पूजन की समग्रता देव मूर्ति के साथ मन्त्र,यंत्र और सुनिश्चित विधि(तंत्र)के रूप में निहित है|तंत्र शास्त्र में वर्णित है कि मूर्ति और मन्त्र की तरह देवताओं का वास यंत्र में भी होता है|इन्हें मात्र ज्यामितीय आकृति मानना बड़ी भूल है|क्योंकि इनकी विभिन्न आकृतियों,मन्त्रों और बीज मन्त्रों की स्थापना में उपासना के गुह्य तत्व निहित होते हैं|इसलिए यंत्रों का विधिवत पूजन करने के लिए विशिष्ट परंपरा में दीक्षित होना अत्यंत आवश्यक है|
यहाँ इस बात का विशेष ध्यान रहे कि यंत्र का निर्माण किसी अनुभवी विद्वान की देखरेख में हो|यंत्र पूजन उसकी प्राण-प्रतिष्ठा के बाद ही करना चाहिए|विशिष्ट स्थान पर स्थापित और नित्य विधिवत पूजित यंत्र के दर्शन मात्र से भी अभीष्ट की पूर्ति होती है,ऐसा तंत्र शास्त्र में वर्णित है|