वैतरणी व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण (बदी) दशमी से पुन: मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी तक करने वाला व्रत है, अर्थात ये एक वर्ष तक चलने वाला व्रत हैं|
विधि- दशमी के अंदर दशमी की घटी में भोजन करना चाहिए, एकादशी को निराधारा व्रत तथा द्वादशी को द्वादशी की घटी में भोजन करे | इस व्रत में एक वर्ष में आने वाली सभी संक्रान्ति को एक समय भोजन व अमावस्या पूर्णिमा को निराधारा रहते हैं, व्यतिपात (बितिबात) को भी निराधारा रहना चाहिए| तथा प्रदोष में शाम को शिव पूजन करके भोजन करे| जमीन के अंदर (जमी दोट) होने वाले फल सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए | एक वर्ष तक मूंग , चावल, तथा गेहू का सेवन करने का भी विधान मिलता है|
“वितरणात् त्रायते इति वैतरणी” अर्थात वितरण यानि दान पुण्य करने से जो मोक्ष प्रदान करे उसी का नाम वैतरणी कहा गया है, अत: एक वर्ष के अंदर आने वाले सभी संक्रान्ति व अमावस्या आदि पर्वो में गरीबों व जरुरत मंदों को यथाशक्ति दान आदि करे | व्रत की समाप्ति पर 26 जोड़ो को भोजन करवाकर विद्वान ब्राह्मणों द्वारा विधि पूर्वक हवनादि कार्य करवाकर कथा श्रवण करके उद्यापन तथा गो दान भूमि अन्न जल आदि का दान करे | |