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पति-पत्नि विरहपीड़ा विनाशक स्तोत्र/परिवार में कलह पति पत्नी मे हो रहे झगड़ो से दिलाएगा निजात

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Gajanan shastri

।। पति-पत्नि विरहपीड़ा विनाशक स्तोत्र ।।

पति-पत्नि में क्लेश, वाद-विवाद या पत्नि के रुठकर पीहर चले जाने आदि कारणों से उत्पन्न विरह-पीड़ा इस स्तोत्र का पाठ करने से दूर होती है एवं दोनों में प्रेम भाव बना रहता है ।

शिव उवाच

ब्राह्मी ब्रह्मस्वरुपे त्वं मां प्रसीद सनातनि ! ।

परमात्मस्वरुपे च परमानन्दरुपिणि ।।१।।

ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे मां प्रसीद भवार्णवे ।

सर्वमंगलरुपे च प्रसीद सर्वमंगले ! ।।२।।

विजये शिवदे देवी ! मां प्रसीद जयप्रदे ।

वेद-वेदांग-रुपे च वेदमातः ! प्रसीद मे ।।३।।

शोकघ्ने ज्ञानरुपे च प्रसीद भक्तवत्सले ।

सर्वसम्पत्-प्रदे माये प्रसीद जगदम्बिके ।।४।।

लक्ष्मीर्नारायण क्रोडे स्त्रष्टुर्वक्षसि भारती ।

मम क्रोडे महामाया विष्णुमाये प्रसीद मे ।।५।।

कालरुपे कार्यरुपे प्रसीद दीन वत्सले ।

कृष्णस्य राधिके भद्रे प्रसीद कृष्णपूजिते ! ।।६।।

समस्तकामिनीरुपे कलांशेन प्रसीद मे ।

सर्वसम्पत्-स्वरुपे त्वं प्रसीद सम्पदां प्रदे ! ।।७।।

यशसस्विभिः पूजिते त्वं प्रसीद यशसां निधेः ।

चराचरस्वरुपे च प्रसीद मम मा चिरम् ।।८।।

मम योगप्रदेदेवी ! प्रसीद सिद्धयोगिनि ।

सर्वसिद्धिस्वरुपे च प्रसीद सिद्धिदायिनि ! ।।९।।

अधुना रक्ष मामीशे प्रदग्धं विरहाग्नि ।

स्वात्मदर्शनपुण्येन क्रीणीहि परमेश्वरी ! ।।१०।।

।।फलश्रुति।।

एतत् पठेच्छ्रणुयाच्चन वियोगज्वरो भवेत् ।

न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि ।।

इस स्तोत्र का पाठ करने अथवा सुनने वाले को वियोग-पीड़ा नहीं होती है और जन्म-जन्मान्तर तक कामिनी भेद नहीं होता है अर्थात् वह अभीष्ट कामिनी जन्म-जन्मान्तर तक साथ रहती है ।विधानम् – पारिवारिक कलह, रोग या अकाल-मृत्यु आदि की संभावना होने पर इसका पाठ करना चाहिए । प्रणय संबधों में बाधाऐं आने पर भी इसका पाठ अभीष्ट फल-दायक होगा । अपने इष्ट-देवता या सती (भगवती गौरी) का विविध उपचारों से पूजन करके उक्त स्तोत्र का पाठ करे । अभीष्ट प्राप्ति के लिये कातरता, समर्पण आवश्यक है ।

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