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द्वार-शाखा मुहूर्ता:

द्वार स्थापना नक्षत्र -उत्तराफाल्गुनी , उत्तराषाढा  , उत्तराभाद्रपद , हस्त , पुष्य , श्रवण , मृगशिरा , स्वाती , रेवती , रोहिणी , इन नक्षत्रो में द्वार स्थापना करना चाहिए |
द्वार स्थापना तिथि फल – प्रतिपदा में दु:ख , द्वितीया में धन की हानि , तृतीया में रोग , चतुर्थी में भंग , षष्ठी में कुल क्षय , दशमी में धन हानि , अमावस्या और पूर्णिमा में विरोध , अन्य सभी तिथियों में द्वार स्थापना शुभ है |
द्वार चक्र देखने की विधि – सूर्य नक्षत्र से वर्तमान नक्षत्र तक , गिने १ से ४ तक धन की प्राप्ति , ५ से १२ तक उद्वसनम् , १३ से २० तक सुख प्राप्ति , २१ से २३ तक गृह स्वामी को कष्ट , २४ से २७ तक सौख्य |
तिथि भेद से मुख्य द्वार वर्जित – शुक्ल पूर्णिमा से कृष्ण पक्ष अष्टमी तक पूर्व में मुख्य द्वार वर्जित , कृष्ण पक्ष नवमी से कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तक उत्तर में मुख्य द्वार वर्जित , अमावस्या से शुक्ल पक्ष अष्टमी तक पश्चिम में मुख्य द्वार वर्जित , शुक्ल पक्ष नवमी से शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तक दक्षिण में मुख्य द्वार वर्जित होता है |
संक्रांति से मुख्य द्वार मास – कर्क – मकर के सूर्य में मुख्य द्वार पूर्व में , तुला – मेष के सूर्य में मुख्य द्वार दक्षिण में , सिंह – कुम्भ के सूर्य में मुख्य द्वार पश्चिम में ,वृष – वृश्चिक के सूर्य में मुख्य द्वार उत्तर दिशा में शुभ है |

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