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13 अप्रैल 2021से हरिद्वार में ‘कुम्भ-महापर्व’ (कुम्भ का माहात्म्य और उसकी स्नान-तिथियाँ)

ज्योतिर्विद रामगोपाल शास्त्री –

रामगोपाल शास्त्री

पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त अमृतकलश को इन्द्र का पुत्र जयन्त राक्षसों से दूर देवताओं की अनुमति से लेकर भागा तो राक्षसों और देवताओं के लिए बारह दिव्य दिन(बारह सौर वर्ष)तक घमासान युद्ध हुआ|इस युद्ध के दौरान अमृतकलश को राक्षसों से बचाने के लिए उसे कभी प्रयाग,कभी उज्जैन,कभी हरिद्वार और कभी गोदावरी तट पर नासिक में छिपाया गया|इन चारों स्थलों पर अमृतकलश से अमृत के बिंदु छलक कर गिरे|इसलिए इन चारों स्थलों पर बारह सौर वर्षों में एक-एक बार कुम्भ पर्व मनाया जाता है|इस अमृतकलश को देवासुरसंग्राम के दिनों में सूर्य ने फूटने से बचाया और गुरु(बृहस्पति)ने इसकी देखभाल की|यही कारण है कि-इन दोनों की विशेष राशियों में स्थिति के समय इन चार स्थलों पर कुम्भपर्व मनाए जाते हैं|कहीं ऐसा भी लिखा है कि-दैत्य देवों की छीना-झपटी में अमृतकलश से अमृत की चार बूँदें हरिद्वार आदि में गिरीं,इसलिए इन स्थलों पर कुम्भ पर्व मनाए जाते हैं|

    कुम्भ राशिस्थ बृहस्पति के समय जिस दिन सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं,उस दिन हरिद्वार में कुम्भ पर्व मनाया जाता है|इस दिन हरिद्वार में गंगा स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है-

    “कुम्भ राशिगते जीवे मेष राशिगते रवौ |

     हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्ति-वर्जनं ||”

इस वर्ष(संवत् 2078 वि.में) 13 अप्रैल 2021 ई.को 2 घ.31 मि.,यानी 14 अप्रैल 2021 ई. के दिन भा.स्टै.टा.अनुसार 2 बजकर 31 मिनट पर सूर्यदेव मेष राशि में प्रविष्ट होंगे|इस समय बृहस्पति कुम्भ राशि में होगा|इसलिए इस दिन(13 अप्रैल को)शास्त्रानुसार हरिद्वार में कुम्भ-महापर्व पर गंगा स्नान एवं दान,जप से महापुण्य प्राप्त होगा|मेष संक्रांति का पुण्यकाल अगले दिन(24 अप्रैल 2021ई.को)मध्यान्ह तक रहेगा-“मध्यरात्रात् परतः संक्रान्तौ परदिनस्य पूर्वार्धम् पुण्यम्|”(अर्थात् यदि संक्रान्ति अर्धरात्रि के बाद हो तो उसका पुण्यकाल दूसरे दिन के पूर्वार्ध में रहता है)- (धर्मसिंधु)| क्योंकि संक्रान्ति के पुण्यकाल में भी तीर्थस्थानों,पवित्र नदियों में स्नान एवं दान-जप आदि का विशेष महत्त्व शास्त्रों में स्थान-स्थान पर वर्णित है,अतः हरिद्वार के कुम्भपर्व पर एकत्रित धार्मिक लोगों को 14 अप्रैल,सन् 2021 ई.को भी मेष संक्रान्ति के पुण्यकाल में (सूर्योदय से पहले अरूणोदय काल से लेकर मध्याह्न तक हरिद्वार में गंगा स्नान,जप-दान आदि करने से चूकना नहीं चाहिए|

   यहाँ विशेष शास्त्रीय निर्देश के अनुसार बेशक हरिद्वार के इस कुम्भपर्व का वास्तविक योग 13 अप्रैल,2021ई. को बना है,किन्तु 14 अप्रैल 2021ई.को मेष संक्रान्ति के पुण्यकाल में भी स्नान-दानादि का माहात्म्य समानरूप से माना गया है,अतः श्रद्धालु जनता इस दिन पुण्यकाल रहित काल में भी धर्म कृत्यों का सम्पादन निःसंदेह कर सकती है|

    ध्यान रहे की-इस हरिद्वार कुम्भ महापर्व का प्रमुख शाही स्नान (जिसमे पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य एवं अखाड़ों के प्रमुख साधु-संत,महन्तश्री आदि गंगा में स्नान करते हैं) 13 अप्रैल को ही होगा|

      कुम्भ पर्व पर स्नान का माहात्म्य

कुम्भ पर्व पर समस्त भारत ही नहीं,विश्व के विभिन्न देशों से असंख्य ब्रम्हनिष्ठ,तपोधन महात्मा लोग हरिद्वार में एकत्र होकर गंगा में स्नान करने के लिए अपने-अपने सम्प्रदाय के महात्माओं के साथ विशिष्ट साज-सज्जा के साथ शोभायात्रा के रूप में निकलते हैं,जिनके दर्शन से धार्मिक लोग अपने जीवन को कृत-कृत्य करते हैं|इस अवसर पर तपःपूत मूर्धन्य महान आत्माओं का यह अपूर्व सम्मेलन वस्तुतः दर्शनीय होता है|इस महापर्व पर श्री गंगाजी में स्नान से मोक्ष की प्राप्ति तथा सभी प्रकार की लौकिक कामनाओं की उपलब्धि की शास्त्रों में चर्चा है|शास्त्र कहते हैं-इस पर्व पर गंगा स्नान से उपलब्ध होने वाले माहात्म्य का बखान करना तो ब्रम्हाजी के लिए भी संभव नहीं-

        “कुम्भ राशिगते जीवे यद्यीने मेषगो रविः |

        हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्ति-वर्जनं ||

        लोके ‘कुम्भ’इति ख्यातः जानीयात् सर्वकामदः |

        गंगायाम् स्नान माहात्म्यम् नालं वक्तुं चतुर्मुखः ||”

एक परम्परा प्राप्त वाक्य में तो कुम्भपर्व पर किये गए गंगास्नान जन्य फल को हज़ारों अश्वमेध एवं सैंकड़ों वाजपेय यज्ञों तथा समस्त पृथ्वी की लाख बार की गयी प्रदिक्षणा से प्राप्त फल से भी कहीं बढ़कर बतलाया गया है –

        “अश्वमेध – सहस्त्राणि वाजपेयशतानि च |

         लक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलम ||”

सन् 2021 ई. में हरिद्वार कुम्भ-महापर्व के विशेष स्नानदिन

 कुम्भ पर्व पर स्नान-दान से पुण्यार्जन करने के इच्छुक असंख्य श्रद्धालु लोग तो कुम्भ पर्व के प्रधान स्नान-दिन से दो-अढ़ाई मास पूर्व ही श्री गंगा के तट पर आ बसते हैं|ऐसे श्रद्धालुओं के लिए पुण्यार्जन-निमित किये जा रहे तीर्थ प्रवास के इन दिनों में अनेक विशेष पर्व आते हैं,जिनमे गंगास्नान का परम्परया बहुत विशेष माहात्म्य माना गया है|इन स्नान-दिनों को कुम्भ पर्व का ही अंग माना गया हैइस वर्ष हरिद्वार के इस कुम्भ पर्व का प्रमुख स्नान तो 13 अप्रैल को ही होगा,लेकिन इसके अंगभूत अन्य स्नानदिन(जिनमे धार्मिक लोग गंगास्नान करके परमपुण्य प्राप्त कर सकेंगे)इस प्रकार है-

1.माघी अमा(11 फ़रवरी 2021 ई.) – इस दिन को ‘मौनी अमा.’के रूप में माना जाता है और इस दिन अमा.का प्रभुत्व सारा दिन विद्यमान है,अतः इस अवधि में स्नान-दानादि से धर्मनिष्ठ सज्जनों को बिलकुल चूकना नहीं चाहिए|

2.वसंत पंचमी (16 फ़रवरी) |

3.आरोग्य(रथ)सप्तमी (18 फ़रवरी) |

4.भीष्माष्टमी (20 फ़रवरी) |

5.माघी पूर्णिमा (27 फ़रवरी) |

6.श्री महाशिवरात्री व्रतदिन (11 मार्च) – यह कुम्भ पर्व का विशेष स्नानदिन है|इस दिन ‘प्रथम शाही स्नान’ होगा,जिसमे दशनाम सम्प्रदाय के सन्यासी स्नान करते हैं|इस दिन स्नान-दानादि का विशेष माहात्म्य शास्त्रप्रतिपादित है,अतः इस दिन स्नान-दान से धर्मप्रवृत लोगों को पुण्यार्जन अवश्य करना चाहिए|

7.शनैश्चरी अमा (13 मार्च) |

8.मीन संक्रान्ति (14 मार्च) |

9.महाविषुवदिन (20 मार्च) |

10.चैत्री अमावस/सोमवती अमावस (12 अप्रैल) – यह भी कुम्भ पर्व का विशेष स्नान दिन है|इस दिन कुम्भ पर्व का ‘द्वितीय शाही स्नान’होगा,जिसमे षड्दर्शन के सन्यासी स्नान करते हैं|

11.मेष संक्रान्ति (13 अप्रैल) – कुम्भ पर्व का यह प्रमुख स्नान दिन है,जहाँ ‘तृतीय(प्रमुख)शाही’स्नान होगा|इस स्नान में षड्दर्शन के शंकराचार्यदि संत-महात्मा अपने विद्वान् शिष्यों सहित शान-शौकत से भाग लेते हैं|ध्यान दें-इस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा/नवरात्र/नववर्ष-प्रारंभ दिन भी है,जिससे इस कुम्भ पर्व के स्नानादि का माहात्म्य और भी बढ़ जाता है|ध्यान रहे- जैसा की पीछे भी लिख आये हैं कि-मेष संक्रान्ति पुण्यकाल अगले दिन (14 अप्रैल,2021 ई.को)मध्यान्ह तक रहेगा,अतः 14 अप्रैल को भी धर्मिष्ठ जनता को स्नान-दानादि संपादित कर पुण्यार्जन अवश्य करना चाहिए|

12.श्रीराम नवमी (21 अप्रैल) |

13.चैत्री पूर्णिमा (27 अप्रैल) |

14.भौमवती अमा (11 मई) |

15.वृष संक्रान्ति एवं श्री परशुराम जयंती/अक्षय तृतीया (14 मई) |

16.श्री शंकराचार्य जयंती (17 मई) |

17.श्रीगंगा-जन्म (18 मई) |

18.वैशाखी पूर्णिमा (कुम्भ पर्व का अंतिम स्नानादि) (26 मई) | – इस स्नानदिनों के अतिरिक्त कुम्भ पर्व पर हरिद्वार में प्रवास करने वाले धार्मिक जनों को सभी एकादशी व्रतों के दिनों अथवा अन्य विशेष पर्वदिनों में भी गंगास्नान का पुण्य प्राप्त करना चाहिए|

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