पीठ की रीढ़ जमीन पर समतल रखकर तैरने तथा सोने के अलावा कोई भी अन्य काम नहीं करना चाहिए|विशेष रूप से बौद्धिक कर्म कदापि न करें|ऐसा पूर्वापर शास्त्र संकेत है|केवल मानव द्वारा पीठ के बल लेटने पर उसकी रीढ़ की हड्डी जमीन के साथ लगभग पूरी तरह से लग जाती है|अन्य सभी प्राणियों की पीठ की रीढ़ और जमीन के बीच 45 अंश से कम का कोण होता है|इसी कारण मानव को छोड़कर बाकी किसी प्राणी में बुद्धि नहीं होती|पीठ की रीढ़ का जमीन के साथ कोण जितना अधिक परन्तु 90 अंश से कम होगा,व्यक्ति उतना ही ज्यादा होशियार रहेगा|
उदाहरणार्थ,पैरों पर खड़ा रहने वाला बन्दर,दो पैरों पर चल सकने वाला कुत्ता और पेंगुइन अन्य प्राणियों से अधिक बुद्धिमान होते हैं|इसके पीछे वैश्विक शक्ति ग्रहण करने वाले शरीर की संवेदना इर स्पंदन लहरी ग्रहण करने वाला एकमात्र अवयव है-पीठ की रीढ़|पीठ की रीढ़ में जो इन्द्रियां होती है,उसे अंग्रेजी में ‘मेड्युला औब्लांगाटा’कहते हैं|इसके द्वारा वैश्विक लहरियों का शरीर में प्रवेश होता है|यदि पीठ की रीढ़ आकाश की ओर मुंह करके खड़ी रहे तो वैश्विक शक्ति बड़े प्रमाण में शरीर में प्रविष्ट होकर मानव को उत्साह,ओज,आरोग्य,बुद्धि तथा स्फूर्ति आदि प्रदान करती है|
इसके विपरीत तिरछे होकर पढने से वैश्विक लहरें मेड्युला में अच्छी तरह प्रविष्ट नहीं हो पाती|जो लहरें प्रवेश कर जाती हैं,उनका प्रक्षेपण उसी स्थिति में यानी तिरछा ही होता है|इसलिए तिरछे होकर अध्ययन करने वाले विद्यार्थी को याद करते समय अपना सिर डेस्क पर रखने की आदत हो जाती है|इसके अलावा तिरछा होकर बौद्धिक कर्म करने वाले व्यक्ति की पीठ की रीढ़ धीरे-धीरे कम संवेदनशील बनती जाती है|इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ी पर पड़ता है|इसी प्रकार घर के प्रौढ़ व्यक्ति आड़े होकर अख़बार या पुस्तक आदि न पढ़ें|कारण कि घर के बच्चे प्रौढ़ व्यक्ति को आड़े होकर पढ़ते देखते हैं और वो भी उनका अनुकरण करते हैं|अतः आड़े होकर वाचन न करने का शास्त्र संकेत है|