यह व्रत माघशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में किया जाता है|इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है|व्रत रखने वालों को दशमी के दिन-रात में भोजन नहीं करना चाहिए|एकादशी के दिन ब्रह्म बेला में भगवान की पुष्प,जल,धूप,अक्षत से पूजन करके निराजना करनी चाहिए|इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है|ब्रह्मा,विष्णु,महेश त्रिदेवों का संयुक्त अंश माना जाता है|यह मोक्ष देने वाला व्रत है|
व्रत की कथा
एक बार पार्वती,लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपने-अपने पति व्रत पर बड़ा घमंड हो गया|नारद इनके गर्व मर्दन के लिए सर्वप्रथम पार्वती के पास गए तथा अत्रि ऋषि पत्नी अनुसूया का बखान करने लगे|नारद के जाने के अनंतर पार्वती में नार्योचित इर्ष्या हुई तथा अनुसूया के चरित्र भंग करने के लिए दिगम्बर शिव से निवेदन किया|
‘नारद के मन कछु न भावा|
एक दिन दो कुकुर लडावा’||
वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए ऋषि राज वीणा तान में मस्त विष्णु लोक पहुंचे|वहां भी लक्ष्मी जी से अनुसूया की भूरी-भूरी प्रशंसा की|
भला लक्ष्मी कब परगुणानुवाद सुनने वाली थी|नारद के अदृश्य होते ही विष्णु से अनुसूया का पति व्रत नष्ट करने का आग्रह किया|उधर ब्रह्म लोक में भी जाकर नारद ने सावित्री से इसी तरह की अनुसूया की प्रशंसा सुनाई|सावित्री भी इन दो देवियों का अनुकरण करती हुई प्रजापति से अत्रि पत्नी के सतीत्व मर्यादा भंग करने की प्रार्थना की|इस प्रकार ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनो देव अनुसूया का व्रत भंग करने के लिए चल दिए|अत्रि ऋषि की कुटिया के निकट ही तीनो का समागम हुआ|तब एक ही समस्या समाधान वाले तीनो देव भिखारी का रूप बनाकर भिक्षाटन करते हुए अनुसूया के द्वार पर पहुंचे|अनुसूया के भिक्षा देने पर सब लोगों ने इनकार कर दिया तथा भोजन करने की इच्छा प्रकट की|
अतिथि सत्कार को ही जीवन समझने वाली अनुसूया ने भिक्षुओं की बात स्वीकार कर ली|इसके पश्चात उन्हें स्नानादि से निवृत होने को कहा|तीनों देवों के आते ही श्रद्धा से अनुसूया जब भोजन की थाली परोस कर लाई तो उन लोगों ने इनकार करते हुए कहा कि जब तक तु नग्न होकर भोजन न परोसेगी तब तक हम लोग भोजन नहीं ग्रहण करेंगे?यह सुनकर अनुसूया के पहले तो पैर से सिर तक आग जल उठी|लेकी पतिव्रत सत्य से देवों का प्रवचन समझ गई| और अपने पातिव्रत्य के प्रभाव से तीनों देवों को बालक बना दिया|
उसके द्वारा अत्रि ऋषि के चरणोदक को छिड़कते ही त्रिदेव छोटे-छोटे बच्चे के रूप में खेलने लगे|तब सति ने उन्हें भरपेट भोजन कराया तथा पालने पर झुलाती हुई वात्सल्य प्रेम में दिन व्यतीत करने लगी|इधर काफी समय बीत जाने पर तथा त्रिदेवों के न लौटने पर त्रिदेवों की देवियाँ घबराने लगी|तब एक दिन नारद के द्वार ज्ञात हुआ कि तीनों देव एक बार अनुसूया के घर जाते दिखाई दिए थे|
इतना सुनते ही लक्ष्मी,ब्रह्माणी,तथा पार्वती अत्रिमुनी के आश्रम में पहुंची तथा अनुसूया से अपने-अपने पतियों के बारे में पूछा|अनुसूया ने पालने की ओर इंगित करले अपने-अपने स्वामी को पहिचानने को कहा|लक्ष्मी ने बहुत चालाकी से विष्णु को पहिचानना चाहा मगर जब पति समझ कर उठाया तो भगवान शंकर निकले|इस पर उनका बड़ा उपहास हुआ|इस प्रकार तीनों देवियों के अनुनय विनय करने पर अनुसूया ने कहा कि लोगों ने मेरा दूध पिया है|अतः इन्हें बच्चे के रूप में ही रहना होगा|इन पर तीनों(ब्रह्मा,विष्णु,महेश)के अंग से एक विशिष्ट अवतार हुआ जिसके तिन सिर तथा 6 भुजाएं थी|यही दत्तात्रेय ऋषि की उत्पत्ति की कथा है|अनुसूया ने पुनः पति चरणोदक से तीनों देवताओं को पूर्ववत् कर दिया|