यह चतुर्दशी कार्तिक कृष्ण पक्ष में आती है|इस दिन सौंदर्य रूप श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए|इस दिन व्रत भी रखा जाता है|ऐसा करने से भगवान सुन्दरता देते है|इसी दिन नरक चतुर्दशी का व्रत भी रखा जाता है|

रूप चतुर्दशी व्रत की कथा
एक समय भारत वर्ष में ‘हिरण्यगर्भ’ नामक नगर में एक योगिराज रहते थे|उन्होंने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा|अतः उन्होंने समाधि लगा ली|समाधि लगाये कुछ ही दिन बीते थे कि उनके शरीर में कीड़े पड़ गये बालों में छोटे-छोटे कीड़े लग गये|आंखों के रोओं और भोहों पर जूएँ जम गई|यह दशा उन योगिराज की हो गई कि योगिराज बहुत दुखी रहने लगे|इतने ही में वहां नारद जी घूमते हुवे,वीणा और खरताल बजाते हुए आ गये|तब योगिराज बोले-हे भगवान!मैं भगवान के चिंतन में लीन होना चाहता था|परन्तु मेरी यह दशा क्यों हो गयी|
तब नारद जी बोले-हे योगिराज!तुम चिंतन करना जानते हो परन्तु देह-आचार का पालन नहीं जानते हो|इसलिए तुम्हारी यह दशा हुई है|तब योगिराज ने नारद जी से देह-आचार के विषय में पूछा|इस पर नारद जी बोले-देह आचार से अब तुम्हे कोई लाभ नहीं है|पहले तुम्हे जो मैं बताता हूँ उसे करना फिर देह-आचार के बारे में बताऊंगा|थोडा रूककर नारद जी ने कहा-इस बार जब कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आवे तो तुम उस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा ध्यान से करना|ऐसा करने से तुम्हारा शरीर पहले जैसा ही स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा|योगिराज ने ऐसा ही किया और उसका शरीर पहले जैसा ही हो गया|उसी दिन से इसको रूप चतुर्दशी कहते हैं|