जो श्रद्धालु लोग प्रयाग न जा सके तो वे केवल माघ मास में अथवा केवल इस अर्धकुम्भ पर्व के दिन किसी भी समीपस्थ महानदी के संगम पर;वहां भी न जा सके तो किसी महानदी में;वहां भी न पहुँच सकें तो किसी छोटी नदी में;वहां भी सम्भव न हो तो किसी समीपस्थ तालाब, बावड़ी में स्नान करें| यदि शारीरिक दुर्बलता के कारण बावड़ी आदि तक जाना भी सम्भव न हो तो घर पर ठण्डे पानी से ;यदि रुग्णादि अवस्था में शीतल जल से भी स्नान करना कठिन हो तो गरम जल से भी स्नान करके माघ स्नान का फल प्राप्त किया जा सकता है|दयालु शास्त्रकारों द्वारा सर्वविध असमर्थ श्रद्धालु को भी माघस्नान का यथासंभव फल प्राप्त कराने के लिए ऐसे उदार विकल्प दिए गए हैं|उल्लिखित असमर्थता की स्थिति में माघस्नानमंत्र का उच्चारण करते हुए प्रयागराज (त्रिवेणी –संगम)का ध्यान करके जहाँ-कहीं भी स्नान करना चाहिए|समुद्रतटवर्ती लोगों को इस माघमास में समुन्द्रस्नान करना चाहिए;क्योंकि शास्त्रों में माघ में समुन्द्रस्नान को अतिप्रशस्त लिखा है
“यत्र कुत्रापि यो माघे प्रयाग-स्मरणान्वितः|
करोति मज्जनं तीर्थे स लभेत परमं पदम्||’’
स्नान का काल
स्नान का सर्वोत्तम काल ‘अरुणोदयकाल’ है(सूर्योदय से पहले पुर्वीक्षितिज में जो प्रकाश नज़र आता है,उसे ‘अरुणोदयकाल’ कहते हैं)|अरुणोदयकाल में भी स्नान के लिए वह समय सर्वोत्कृष्ट है,जब तारे दिखाई पड़ रहें हों,इसके बाद सूर्योदय तक का काल,जब तारे छिप चुके हों,अपेक्षाकृत कुछ कम महत्व का है|सूर्योदय के बाद प्रातःकाल स्नान के लिए सामान्य माना गया है –
“उत्तमं तु सनक्षत्रं लुप्ततारम् तु मध्यमम्|
सवितर्युदिते भूप ततो हिनं प्रकीर्तितम||’’
नारदपुराण में तो सूर्योदयानंतर स्नान का भी माहात्म्य लिखा है|-
“सम्प्राप्ते माघमासे तु तपस्विजनवल्ल्भे|
क्रोशन्ती सर्ववारीणि समुद्गच्छति भास्करे||
पुनीमस्तस्य पापानि त्रिविधानि न संशय||’’
इस अर्धकुम्भ पर्व के प्रमुख स्नान के दिन (4 फरवरी,2019)को तो अरुणोदयकाल से लेकर सारा दिन सूर्यास्त तक त्रिवेणी में कभी भी स्नान किया जा सकता है;क्योंकि अर्ध-कुम्भयोग के कारण पूरा दिन पवित्र माना जाता है|स्नान करते समय पद्यपुराण के इस मंत्र का जाप भी करना चाहिए –
“दुःखदारिद्र-यनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च|
प्रातःस्नानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम्||
मकरस्थे रवौ माघे गोविंदाच्युत माधव|
स्नानेनानेंन में देव यथोक्तफलदो भव||’’
इस मंत्र को मन-ही-मन जपते हुए श्रीविष्णु का ध्यान करते हुए स्नान करें|स्नान के समय बातचीत न करें|
दान-त्रिवेणी में माघ स्नान करके प्रतिदिन निर्धनों को तिल और शक्कर(चीनी) दान करें|इसमें तीन भाग तिल और चौथा भाग शक्कर होनी चाहिए|इस विषय में नारदपुराण का वाक्य है-
“अहन्यहनिं दातव्यास्तिलाः शर्करयान्विता:|
त्रिभागस्तु तिलानां हि चतुर्थ: शर्करयान्वित||’’
इस समय तिल-शक्कर के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थ भी दान करें|इस पुण्यप्रद अवसर पर दान की भारी महिमा है|तिल,शक्कर के अलावा निर्धनों एवं संत-महात्माओं को श्रद्धापूर्वक तिलनिर्मित मिठाई, गर्म कम्बल,रेशमी आदि वस्त्र,अन्न,सुवर्ण आदि का भी यथाशक्ति दान करें|यह दान अर्द्ध कुम्भपर्व योग के दिन (4 फरवरी 2019) को विशेषरूप से करना चाहिए|इस अर्द्ध कुम्भ्योग में कलशदान का भी माहात्म्य है|
कर्तव्य और अकर्तव्य- माघस्नान के दिनों में इन्द्रियों को संयत रखकर नियमपूर्वक रहना चाहिए|काम,क्रोध और लोभ से दूर रहे|किसी भी प्रकार के पाप की ओर प्रवृति से बचें|माघ-स्नानावधि में मूली,गाजर,शलगम आदि के प्रयोग का शास्त्रकारों ने निषेध लिखा है|
“माघे यत्नेन संत्याज्यं मूलकं मदिरोपमम्|
पितृणां देवतानां च मूलकं नैव दापयेत्||’’
माघस्नान के दिनों में एक मास तक शीत से बचने के लिए अग्नि का सेवन न करें|अग्नि का सेवन केवल होम(यज्ञ)के लिए ही किया जाना चाहिए,ऐसा शास्त्रादेश है-
न वह्निं सेवयेत् स्नातो ह्यस्नातोऽपि वरानने|
होमार्थम् सेवायेद् वह्निं शितार्थं न कदाचन||
इस प्रकार शास्त्रोक्त विधि निषेधो का अनुसरण करते हुए, स्नान-दान आदि द्वारा सर्वथा शुद्ध, निष्पाप एवं पुण्य अंतरात्मा लिए हुए श्रद्धालुओं को प्रयागराज से लोटकर भविष्य में किसी प्रकार का मानसिक,वाचिक,एवं शारीरिक पाप करने से सर्वथा विमुख रहने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए, ताकि अर्धकुम्भ कुंभ जेसे पर्व पर स्नान,जप,दान आदि से अर्जित महान पुण्य संचय बिखर ना जाए-