वेठ पाठ के आरंभिक मंत्रोच्चारण से पूर्व ‘हरि ॐ’का उच्चारण करना वैदिकों की परंपरागत प्रणाली है,इसका तात्पर्य यह है कि वेद के अशुद्ध उच्चारण में महापातक लगता है और अत्यधिक सावधान रहने पर भी मनुष्य सुलभ स्वर वर्ण वृद्धावास्थाजन्य अशुद्धि हो जाने की पूरी सम्भावना रहती है|
अतः इस संभावित दोष से निवृति के लिए आदि और अंत में ‘हरि ॐ’शब्द का उच्चारण करना अनिवार्य है|श्रीमदभागवत में लिखा है-
मन्त्रतस्तन्त्रतशिछंद्र देश्कालार्ह्वस्तुतः |
सर्वं करोति निश्छिन्द्र नामसंकीर्तन हरेः ||
अर्थात् मंत्रोच्चारण,तत्तद विधि-विधान,देशकाल और वस्तु की कमी के कारण धर्मानुष्ठान में जो भी कमी हो,’हरि’नाम का संकीर्तन करने से उन सब बाधाओं का शमन हो जाता है|