शिव पूजा के सम्बन्ध में विभिन्न पंथों में अलग-अलग प्रथाएँ और रूढ़ियाँ प्रचलित हैं|शिवजी को अर्पण किया हुआ नैवेद्य,पत्र,फूल,फल एंव जल अग्राह्य माने गए है|लेकिन शिव को पूर्ण ब्रम्ह माननें वाले भक्त ग्राह्याग्राह्यता के बारे में कभी नहीं सोचते|यदि शिव पिंड को चिता भस्म का लेपन किया जाता है तो …
Read More »कहानी वीर भूमि सिंजगुरू की :-
ठा.उदयभानसिंह मेड़तिया(राठौड़)नागौर के गाँव निम्बी से आए थे|वे बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह जी की फ़ौज में थे|लड़ाई में बहादुरी दिखाने के एवज में सिंजगुरू का पट्टा व 12 गावों की जागीर बखसीस में मिली थी|लक्ष्मण सिंह,राजासिंह,शक्तिसिंह,पृथ्वीसिंह,कालूसिंह के वंशज रुघनाथसिंह आज भी सिंजगुरू में है|ठाकुर रुघनाथसिंह बताते हैं कि 16 वी.सदी …
Read More »जप कैसे करें?
जप के मुख्यतः चार प्रकार हैं-पहला वैखरी,दूसरा उपांशु और तीसरा पश्यन्ति और चौथा परा|किसी भी परश्चरण के लिए मानसिक जप की ही आवश्यकता रहती है|कोई भी मन्त्र एकदम मानसिक रीति से नहीं जपा जा सकता है|इसके लिए प्रारंभ में उस मन्त्र को वैखरी से ही जपना चाहिए|वैखरी जप का अर्थ …
Read More »यज्ञ में आहुति के साथ स्वाहा का उच्चारण क्यों ?
पुराणेतिहास से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जब भी असुरों ने देवताओं को पराजित किया,उन्होंने यज्ञों का भी विध्वंस किया|देवताओं की पुष्टि नहीं होने देना चाहते| पूर्व मिमांसी के अनुसार यज्ञाग्नि के माध्यम से भेजी गई आहुतियों देवताओं तक अवश्य पहुँचती है|प्रज्वलित अग्नि में मंत्रोच्चारण के साथ ‘स्वाहा’बोलते …
Read More »मन्त्र प्रभावशाली क्यों ?
मन्त्र मूलतः वर्ण अथवा वर्णों का समूह ही है|मंत्रशास्त्र के प्रसिद्ध सिद्धांत ‘’अमन्त्रमक्षर नास्ति’’के अनुसार प्रत्येक अक्षर या वर्ण मन्त्र ही है| ‘’शिवसूत्र-विमर्शिनी’’में इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि-सभी मंत्र वर्णात्मक हैं और सभी वर्ण शिवात्मक हैं(मंत्रा वर्नात्मकः सर्वे,सर्वे वर्णाः शिवात्म्काः)| आदौ भगवान शब्दराशिः|आदि भगवान परशिव …
Read More »श्रीयंत्र यंत्रराज क्यों ?
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मीजी पृथ्वी से रुष्ट होकर वैकुण्ठ चली गईं|लक्ष्मी की अनुपस्थिति में पृथ्वी पर अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गईं|महर्षि वशिष्ठ और श्री विष्णु के बहुत मनाने पर भी लक्ष्मी नहीं मानी|तब देव गुरु बृहस्पति ने लक्ष्मी को आकर्षित करने के लिए ‘श्रीयंत्र’स्थापना एंव पूजन …
Read More »नवरात्र पूजन क्यों ?
‘नवरात्र’ शब्द में ‘नव’संख्यावाचक होने से नवरात्र के दिनों की संख्या नौ तक ही सिमित होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है|कुछ देवताओं के सात दिनों के तो कुछ देवताओं के 9 या 13 दिनों के नवरात्र हो सकते हैं|सामान्यतया कुलदेवता या इष्टदेवता का नवरात्र संपन्न करने का कुलाचार है|किसी देवता …
Read More »बाईं करवट लेटें क्यों ?
शतपावली के समान ही भोजन के बाद बाईं करवट लेटने भी आवश्यक है|इसे वामकुक्षी भी कहते हैं|इसका अनन्य लाभ मिलता है|इस सम्बन्ध में शास्त्र संकेत है-वामपाशर्वेण संविशेत्|अर्थात भोजन करने के बाद बाईं तरफ मुंह करके कुछ देर तक लेते रहें| इसके पीछे तीन कारण हैं-पहला,अन्न का कुछ देर जठर में …
Read More »लेटकर न पढ़े क्यों ?
पीठ की रीढ़ जमीन पर समतल रखकर तैरने तथा सोने के अलावा कोई भी अन्य काम नहीं करना चाहिए|विशेष रूप से बौद्धिक कर्म कदापि न करें|ऐसा पूर्वापर शास्त्र संकेत है|केवल मानव द्वारा पीठ के बल लेटने पर उसकी रीढ़ की हड्डी जमीन के साथ लगभग पूरी तरह से लग जाती …
Read More »यंत्र पूजन क्यों ?
पूजन की समग्रता देव मूर्ति के साथ मन्त्र,यंत्र और सुनिश्चित विधि(तंत्र)के रूप में निहित है|तंत्र शास्त्र में वर्णित है कि मूर्ति और मन्त्र की तरह देवताओं का वास यंत्र में भी होता है|इन्हें मात्र ज्यामितीय आकृति मानना बड़ी भूल है|क्योंकि इनकी विभिन्न आकृतियों,मन्त्रों और बीज मन्त्रों की स्थापना में उपासना …
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