शतपावली के समान ही भोजन के बाद बाईं करवट लेटने भी आवश्यक है|इसे वामकुक्षी भी कहते हैं|इसका अनन्य लाभ मिलता है|इस सम्बन्ध में शास्त्र संकेत है-वामपाशर्वेण संविशेत्|अर्थात भोजन करने के बाद बाईं तरफ मुंह करके कुछ देर तक लेते रहें|
इसके पीछे तीन कारण हैं-पहला,अन्न का कुछ देर जठर में ही रहना शरीर के लिए पथ्यकारक होता है|जठर के आंकुचन-प्रसारण के कारण अन्न तरल होकर अगले मार्ग में प्रविष्ट होता है|इससे पाचन अच्छी तरह होता है|दूसरा कारण है-जठर के अगले हिस्से में पूरा अन्न जाने पर उसकी बाईं ओर स्थित आंकुचन-प्रसारण वाली जगह पर अन्न का दबाव पड़ता है|दाएँ ओर सोने से यह दबाव नहीं आता|तीसरा कारण है-दाएँ नासिका से सूर्य नाड़ी ‘पिंगला’एंव बाएँ नासिका से चन्द्र नाड़ी ‘इड़ा’बहती रहती है|अन्न पाचन के लिए पिंगला का स्वर चलना अत्यंत आवश्यक होता है|इसलिए भोजन के बाद बाई ओर कम से कम एक घंटा 24 मिनट तक सोएं|