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कब और कैसे करे शीतलाष्टमी का पूजन? – पं.राम गोपाल शास्त्री

बासोड़ा शीतलाष्टमी पूजन

इस बार 9 मार्च 2018 चैत्र कृष्णा अष्टमी शुक्रवार को (बासोड़ा) पूजन का शुभ योग बन रहा हैं|

अर्थात्- गुरुवार को बासोड़ा बनाया जाएगा और शुक्रवार को प्रात:काल में शीतला माता का पूजन करके भोग लगेगा |

बीरा भिगोने का मुहूर्त – 8 मार्च 2018 को शाम 05:11 से 06:39 तक

लोकाचार अनुसार कुछ लोग सप्तमी को भी पूजन करते हैं|

                                                                वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।   
                                                            मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।

विधि:- बासोड़ा के एक दिन पहले गुड चीनी का मीठा भात या दलिया आदि बनाना चाहिए| मोठ, बाजरी, भिगोकर तथा रसोई की दिवार धोकर हाथ सहित पांच उंगलिया घी में डुबोकर एक छापा लगाना चाहिए | रोली,मोली,चावल, चढ़ाकर शीतला के गीत गाना चाहिए| बासोड़ा के दिन प्रात:काल एक थाली में भात दलिया, रोटी, दही, चीनी, घी पानी का कलश रोली,मोली,मोठ,बाजरी,के बीरा,हल्दी धूपबत्ती एक गूलरी (बडकुल्ला) की माला राख से बनाए पिंडिये आदि सामान से माता का पूजन करना चाहिए| घर के सभी बच्चो के मुह को माताएं कच्चे दूध व पानी से धोकर तिलक लगाए, इससे शीतला माता प्रसन्न व ठंडी रहती हैं| यदि किसी के घर में कुंडारा भरता हो तो वे एक बड़ा कुंडारा में राबड़ी,एक में भात,रसगुल्ला,बाजरा,हल्दी पीस कर रख लेवे| फिर सब कुंडारे एक बड़े कुंडारे में रख ले और हल्दी का टिका लगाकर सबका पूजन करलेवे और समस्त पूजन सामग्री शीतला माता को लेजाकर चढ़ा देवे | कुंडारे की पूजा के पश्चात् कहानी सुन लेवे |

कथा-

लोक किंवदंतियों के अनुसार बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है।
कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया।
शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गरम भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। बस केवल एक बुढि़या का घर सुरक्षित बचा हुआ था।
गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढि़या ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया।
बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने मां से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।
आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता…
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता…
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता…
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता…
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता…
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता…
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता…
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।
जय शीतला माता…।

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