सूर्य ग्रहों के स्वामी हैं|पञ्च देवों में से एक हैं|सूर्य को प्रत्यक्ष देवता स्वीकार गया है|सूर्य काल के नियामक हैं|जीवन को व्यवस्था सूर्य से ही मिलती है|पुरानों में सूर्योपासना को सर्वरोगों को हरने वाले कहा गया है|
हिन्दू संस्कृति में अर्घ्यदान(जल देना)सामने वाले के प्रति श्रद्धा और आस्था का प्रतिक है|स्नानादि के बाद भगवान् सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है जीवन में संतुलन को आमंत्रित करना|जहाँ स्नान के लिए नदी या सरोवर उपलब्ध है,वहां लोगों को सचैल(गीले वस्त्रों के साथ ही)सूर्य को अर्घ्य देते हुए आज भी देखा जा सकता है|अर्घ्य देते समय सूर्य के नामों का उच्चारण करने का विधान है| शास्त्रानुसार प्रातः पूर्व की ओर मुख करके सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए,जबकि सांय में पश्चिम की ओर|धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य को अर्घ्य दिए बिना अन्न ग्रहण करना पाप है|मान्यता है की सूर्य को अर्घ्य देते समय गिरने वाले जल कण वज्र बनकर राक्षसों का विनाश करते हैं|रोग ही तो राक्षस हैं|अर्घ्य की विधि को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जल के संस्पर्श से सूर्य की रश्मियां किस प्रकार सात रंगों में बंट जाती है और उनका प्रभाव अर्घ्य प्रदान करने पर किस तरह से पड़ता है|इस सत्य को तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जो रोगाणु सामान्यतया उबालने और शुष्कीकरण जैसी विशिष्ट क्रियाओं से नहीं मरते,उन्हें सूर्य किरणें निर्मूल कर नष्ट कर देती हैं|सूर्य को अर्घ्य देने वाले के नेत्र ज्योति क्षीण नहीं होती,ऐसा आयुर्वेद ग्रंथों में कहा गया है|आँखों का अधिष्ठाता भी शास्त्र सूर्य को ही मानते हैं|
सूर्य देवता को अर्घ्य देते समय कोनसा मन्त्र काम में लें –
भगवान सूर्य को ताम्बे के पात्र से अर्घ्य दें और निम्न मन्त्र का जाप करें:-
1.ॐ घृणी सूर्याय नमः ||
2. ॐ सूर्य देवाय नमः ||
3. ॐ भास्कराय नमः ||
4. ॐ एही सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पतये|अनुकम्पये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकरः||
5.ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय,सहस्त्र किरणाय|मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहाः||
उपरोक्त मन्त्र सूर्य के जल चढाते समय सीधे आपकी पूजा को सूर्य भगवान् तक ले जाते हैं और आप उनकी कृपा के पात्र बनते हैं|