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मांगलिकदोष व विवाह बाधा निवृति कारक श्री मंगलचंडिका स्तोत्रम्

यदि आपकी कुण्डली में मांगलिक दोष व विवाह में बाधा आरही है, तो आपको घबराने की बिलकुल भी जरुरत नहीं है, क्योकि माँ मंगलागौरी मंगलचण्डिके आपकी सब बाधाओ को दूर करके मन वांछित फल प्रदान करेगी,यदि आप उनकी निम्न स्तुति का पाठ करते है तो-

विधि- किसी भी महीने के मंगलवार से प्रातः शोच आदि से निवृत होकर स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करके गाय के गोमय (गोबर) से माँ भगवती मंगल चंडिका की मूर्ति बनाकर गंध अक्षत माला आदि से विधिवत पूजन करके इस स्तोत्र का पाठ करे तथा बाद में मूर्ति को किसी नदी या तालाब में विसर्जित करदे ये पाठ व पूजन तबतक करना है जबतक आपकी मनोकामना पूर्ण ना हो जाए| जो भाई बहन इस विधि को नहीं कर पाए वो किसी विद्वान ब्राह्मण से पाठ व पूजन करवाए,यदि ऐसा भी न करवा सके तो प्रतिदिन स्नान के बाद अपने घर में स्थित पूजा घर में बैठ कर केवल पाठ ही करले आपकी मनोकामना अतिशीघ्र पूर्ण करेगी माँ मंगल चण्डिके ॐ||

||श्री मंगलचण्डिकास्तोत्रम् ||

ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं सर्वपुज्ये देवी मंगलचण्डिके

ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविंशाक्षरो मनुः ||

पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानाम् सर्वकामदः |

दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिधिर्भवेन्नृणाम् ||

मन्त्रसिधिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः |

ध्यानञ्च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् ||

देवीं षोडश वर्षीयां रम्यां सुस्थिरयौवनाम् |

सर्वरूपगुणाढ्यञ्च कोमलांगीं मनोहराम् ||

श्वेतचम्पकवार्णभां चंद्रकोटी समप्रभाम् |

वन्हिशुद्धां शुकाधानाम् रत्नभूषणभूषिताम् ||

बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिका माल्यभूषितम् |

बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्||

ईशद्धास्य प्रसन्नास्यां सुनिलोल्पल लोचनाम्|

जगद्धात्रीञ्च दात्रीञ्च सर्वेभ्य: सर्वसम्पदाम्||

संसारसागरे घोरे पीतरूपां वरां भजे||

देव्याश्च ध्यान्मित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने|

प्रयत: संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकर||

शंकर उवाच
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवी मंगल चण्डिके।
हारिके विपदां राशेर्हर्ष मंगलकारीके।।
हर्षमंगल दक्षे च हर्षमंगल चण्डिके।
शुभे मंगल दक्षे च शुभ मंगल चण्डिके।।
मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगल मंगले।
सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये।।
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट दैवते।
पूज्ये मंगलभूपस्य मनुवंशस्य सन्ततम्।।
मंगलाधिष्टातृदेवि मंगलानां च मंगले।
संसार मंगलाधारे मोक्षमंगल दायिनि।।
सारे च मंगलाधारे पारेत्वम् सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे।।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगलचण्डिकाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वागत: शिव:।।
देव्याश्च मंगल स्तोत्रं यः शृणोति समाहितः।
तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमंगलम्।।
।।इति श्री ब्रह्मवैवर्त द्वितीये प्रकृति खण्डे नारद नारायण संवादे मंगलचण्डिका स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

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