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सर्व प्रथम गणेश का ही पूजन क्यों? आचार्य गजानन शास्त्री

सर्व प्रथम गणेश का ही पूजन क्यों?

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभकार्य का आरम्भ करने से पहले गणेश जी की पूजा करना परमावश्यक माना गया है, क्योकि उन्हें विघ्नहर्ता व रिद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है| इनके स्मरण,ध्यान,जप,आराधना, से कामनाओं की पूर्ति होती है,व विघ्नों का विनाश होता है| वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणव स्वरुप है| गणेश का अर्थ है – गणों का ईश |अर्थात्- गणों का स्वामी| किसी पूजा,आराधना,अनुष्ठान व कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न बाधा न पहुचाए इसलिए सर्वप्रथम गणेश-पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त की जाती है| प्रत्येक शुभकार्य से पूर्व श्री गणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मन्त्र बोला जाता है-

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ |

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ||

अर्थात्- विशाल आकर और टेढ़ी सूंड वाले करोड़ों सूर्य के सामान तेज़ वाले हे देव गणेश जी | मेरे समस्त कार्यो को सदा विघ्न रहित पूर्ण (संपन्न) करें|

वेदों में गणेश की महत्ता व उनके विघ्नहर्ता स्वरुप की ब्रह्मरूप में स्तुति व आवाहन करते हुए कहा गया है-

गणानां त्वा गणपतिम् हवामहे कविं कवीनामुपश्रवस्तमम्|

ज्येष्ठराजं ब्राह्मणस्पत आ न: शृण्वन्न्तिभि: सीद सादनम्||

अर्थात्- आप देवगणों के प्रभु होने से गणपति हो, ज्ञानियों में श्रेष्ठ हो, उत्कृष्ट रितिवालों में श्रेष्ठ हो| तुम शिव के पुत्र हो, अत: हम आदर से तुम्हारा आह्वान करते है| हे ब्राह्मणस्पते गणेश! तुम अपनी समस्त शक्तिओं के साथ इस आसन पर आओ|

नि षु सीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् |

न ऋते त्वत् क्रियते किम् चनारे महामर्कं मघ्वार्कं मघवं चित्रमर्च ||

अर्थात्- हे गणपते आप देव आदि समूह में विराजिए, क्योकि समस्त बुद्धिमानों में आप ही श्रेष्ठ है| आपके बिना समीप या दूर का कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता| हे पूज्य आदरणीय गणपते हमारे सत्कार्यो को निर्विघ्न पूर्ण करने की कृपा कीजिए|

गणेश जी विद्या के देवता है| साधना में उच्चस्तरीय दूरदर्शिता आ जाए, उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो जाए इसलिए सभी शुभ कार्यों में गणेश पूजन का विधान बनाया गया है|

गणेश जी की ही पूजा सबसे पहले क्यों होती है, इसकी पौराणिक कथा इस प्रकार है-

पद्मपुराण के अनुसार-

सृष्टि के आरम्भ में जब ये प्रश्न उठा कि प्रथम पूज्य किसे माना जाए,तो समस्त देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे| ब्रह्मा जी ने कहा कि जो कोई सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा,उसे ही प्रथम पूजा जाएगा|इस पर सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पड़े | चूँकि गणेश जी का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल तो ऐसे में वे परिक्रमा कैसे कर पाते? इस समस्या को सुलझाया देवर्षि नारद ने | नारद ने उन्हें जो उपाय बताया उसके अनुसार गणेश जी ने भूमि पर “राम” नम लिख कर उसकी सात परिक्रमा करली और ब्रह्मा जी के पास सबसे पहले पहुच गये| तब ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रथम पूज्य बताया | क्योंकि “राम” नाम साक्षात् श्री राम का स्वरुप है,और श्री राम में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड निहित है|

शिव पुराण की एक अन्य कथा के अनुसार एक बार समस्त देवता भगवान शंकर के पास यह समस्या लेकर कि किस देव को उनका मुखिया चुना जाए | भगवान शिव ने यह प्रस्ताव रखा कि जो भी पहले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके कैलाश लोटेगा, वहीँ अग्रपूजा के योग्य होगा व उसे ही देवताओं का स्वामी बनाया जाएगा| अब गणेश जी का वाहन चूहा अत्यंत धीमी गति से चलने वाला था, इसलिए अपनी बुद्धि चातुर्य के कारण उन्होंने अपने पिता शिव और माता पार्वती की ही तीन परिक्रमा करली और हाथ जोड़कर खड़े हो गये| शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढकर संसार में कोई इतना चतुर नहीं है| माता-पिता की परिक्रमा से तीनो ;लोकों की परिक्रमा का पुण्य मिल गया,जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा है, इसलिए जो भी मनुष्य किसी कार्य के शुभारम्भ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नहीं आएगी| बस तभी से गणेश जी अग्रपूज्य हो गये|

वाराह पुराण

के अनुसार जब देव गणों की प्रार्थना सुनकर महादेव ने उमा की और निर्निमेष नेत्रों से देखा उसी समय रूद्र के मुखरूपी आकाश से एक परम सुन्दर तेजस्वी कुमार वहां प्रकट हो गया| उसमे ब्रह्मा के सब गुण विद्यमान थे, और वह दुसरे रूद्र जैसा ही लगता था| उसके रूप को देखकर पार्वती को क्रोध आगया और उन्होंने शाप दिया कि हे कुमार तु हाथी के सिर वाला लम्बा पेट वाला और साँपों की जनेऊ वाला हो जाएगा| इस पर शंकर जी ने क्रोधित होकर अपने शरीर को धुना तो उनके रोमों से हाथी के सिर वाला, नीले अंजन जैसे रंग वाला अनेक शस्त्रों को धारण किए हुए इतने विनायक उत्पन्न हुए की पृथ्वी क्षुब्ध हो उठी देवगण घबरागये| तब ब्रह्मा ने महादेव से प्रार्थना की हे त्रिशूल धारी आपके मुख से उत्पन्न हुए ये विनायक गण आपके इस पुत्र के वश में रहे, आप प्रसन्न होकर इन सबको एसा ही वार दे| तब प्रसन्न होकर शिव ने कहा की यज्ञादि कार्यो में तुम्हारी सबसे पहले पूजा होगी और तुम्हे विघ्नहर्ता के नाम से मृत्युलोक में ही नहीं समस्त ब्रह्माण्ड में प्रथम पूजे जाओगे| इसके अनन्तर देवगणों ने गणेश जी की स्तुति व शिव ने उनका अभिषेक किया||

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