रुद्राक्ष एक वनस्पति है|इसके पेड़ पर बेर जैसे फल लगते हैं|कहा जाता है कि त्रिपुरासुर का वध करते समय रुद्रावतार धारण किये भगवान शंकर की आँखों से बहने वाला जल रुद्राक्ष के रूप में पृथ्वी पर साकार हुआ|रुद्राक्ष की शक्ति एंव औषधि गुण प्रयोगशाला में जांच करने के बाद सिद्ध हुए हैं|रुद्राक्ष में निहित स्पंदनों से आसपास का वातावरण शुद्ध होता है|रुद्राक्ष को रात भर पानी में भिगोकर रखें और प्रातः काल खली पेट वह पानी पी लें|इससे ह्रदय रोग उत्पन्न नहीं होता| ‘महालक्ष्मी विलास’औषधि के साथ रुद्राक्ष के ग्यारह फेरे लगाकर दीर्घकाल तक ग्रहण करने से संधिवात रोग ठीक हो जाता है|
पूर्वापर मान्यता के अनुसार 1 से लेकर 35 मुह वाले रुद्राक्ष उपलब्ध हैं|विविध कार्यसिद्धि के लिए विभिन्न रुद्राक्ष उपयोग में लाए जाते हैं|लेकिन गौरी-शंकर नामक संयुक्त रुद्राक्ष,पैंतीस मुखी एंव एकमुखी रुद्राक्ष बहुत कम प्राप्त होते हैं|पुराना रुद्राक्ष अधिक प्रभावशाली होता है|
रुद्राक्ष स्वभाव से ही प्रभावशाली होता है|लेकिन यदि उसे विशेष पद्धति से सिद्ध किया जाए तो उसका प्रभाव कई गुना अधिक महसूस होता है|अगर जप के लिए रुद्राक्ष की माला सिद्ध करनी हो तो उसे पहले पंचगव्य में डुबोएं,फिर साफ़ पानी से धो लें|हर मणि पर ईशानः सर्वभूतानाम् मन्त्र 10 बार बोलें|मेरु मणि पर अघोरो भो त्र्यम्बकं मंत्र बोलें|यदि एक ही रुद्राक्ष सिद्ध करना हो तो पहले उसे पंचगव्य से स्नान करा लें|तत्पश्चात गंगाजल में उसका मार्जन करें|बाद में उसकी षोडशोपचार पूजा करके उस पर रुद्राक्ष की एकादष्नी करें,फिर उसे चांदी के डिब्बे में रखें|उस पर प्रतिदिन या महीने में एक बार इत्र की दो बूंदें डालें|हाथ में दर्भ लेकर उसका स्पर्श रुद्राक्ष से करके इच्छित इष्ट मन्त्र का जप करें|
विविध रुद्राक्ष विभिन्न कार्यों के लिए काम में लाए जाते हैं|इसलिए उनके मन्त्र एंव सूक्त भी अलग-अलग हैं|सामान्यतया चतुर्मुखी रुद्राक्ष अध्ययन के लिए,पंचमुखी रुद्राक्ष नित्य जप के लिए,षड्मुखी रुद्राक्ष पुत्र प्राप्ति के लिए,चतुर्दश एंव पंचदश मुखी रुद्राक्ष लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तथा इक्किसमुखी रुद्राक्ष केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए धारण करने की प्रथा है|यामल एंव डामर तंत्र के कुछ मन्त्र ,श्रीसूक्त,विष्णुसुक्त,पवमान रूद्र,मन्युसुवत,चतुर्दश प्रण्वात्मक महामृत्यंजय,शंतिसुक्त,रुद्रसूक्त,तथा सौरसुक्त आदि का उपयोग कार्यानुसार रुद्राक्ष सिद्धि के लिए किया जाता है|रुद्राक्ष सिद्ध करना सहज बात है|परन्तु वह सिद्धि बनाये रखना मुश्किल है|दुराचार,अनाचार,व्यभिचार,पैशुन्य,अशुचित्व तथा असत्य वचन आदि कारणों से रुद्राक्ष की सिद्धि कम हो जाती है|
गले में 32 रुद्राक्षों की माला,सिर पर 40 रुद्राक्षों की माला,कणों में 6 या 8 रुद्राक्षों की माला,चोटी की जगह एक तथा वक्षस्थल पर 108 रुद्राक्षों की माला धारण करने की पद्धति ‘रुद्राक्ष धारण विधि’कहलाती है|किन्तु आज के ज़माने में ऐसी रुद्राक्ष धारण विधि प्रस्तुत न होने से गले में 108 या 32 रुद्राक्षों की माला पहनने की प्रथा है|हाथ में भी 27,54,या 108 रुद्राक्षों की माला होनी चाहिए|शिव पूजन करते समय रुद्राक्ष धारण विधि अवश्य करें|यदि पूर्ण विधि न कर सकें तो बाहू एंव गले में रुद्राक्ष अवश्य धारण करें|रुद्राक्ष का स्पर्श शरीर से होना व्याधिहारक एंव आरोग्यप्रद होता है|