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नवरात्र पूजन क्यों ?

‘नवरात्र’ शब्द में ‘नव’संख्यावाचक होने से नवरात्र के दिनों की संख्या नौ तक ही सिमित होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है|कुछ देवताओं के सात दिनों के तो कुछ देवताओं के 9 या 13 दिनों के नवरात्र हो सकते हैं|सामान्यतया कुलदेवता या इष्टदेवता का नवरात्र संपन्न करने का कुलाचार है|किसी देवता का अवतार तब होता है जब उसके लिए कोई निमित्त होता है|यदि कोई दैत्य उन्मत्त होता है,भक्तजन परम संकट में फंस जाते हैं अथवा इसी प्रकार की कोई अन्य आपत्ति आती है तो संकट की कालावधि 7 दिनों से लेकर 13 दिनों तक रहती है|

ऐसी कालावधि में उस देवता की मूर्ति या प्रतिमा का टांक चांदी के पात्र या नागावेली के पत्ते पर रखकर नवरात्र बैठाए जाते हैं|उस समय स्थापित देवता की षोडशोपचार पूजा की जाती है|अखंड दीप प्रज्वलन,माला बंधन,देवता के माहात्म्य का पठन,उपवास तथा जागरण आदि विविध कार्यक्रम करके अपनी शक्ति एंव कुलदैवत के अनुसार नवरात्र महोत्सव संपन्न किया जाता है|यदि भक्त का उपवास हो तो भी देवता को हमेशा की तरह अन्न का नैवेद्य देना ही पड़ता है|इस कालावधि में उत्कृष्ट आचार के एक अंग के स्वरुप श्मश्रु(हजामत)न करना और कड़े ब्रम्हाचर्य का पालान्कारना भी समाविष्ट है|

इसके आलावा पलंग या गद्दे पर न सोना,सीमा का उल्लंघन न करना और पादत्राण न पहनना आदि बातों का भी पालन किया जाता है|आज के युग में सभी बातों का पालन करना व्यावहारिक एंव कष्टकारक होता है|इसलिए हमें अधिक असुविधाएं न देने वाली बातों का पालन करना चाहिए|इसके लिए ब्रम्हाचर्य का पालन,पालन-गद्दे पर न सोना,पहले दिन और आखिरी दिन उपवास करना तथा कलह न करना आदि बातों का पालन अत्यावश्यक है|इससे नवरात्र के फल तो प्राप्त होते ही हैं,साथ ही साथ शारीरिक एंव मानसिक आरोग्य के लिए भी ये बहुत उपकारक सिद्ध होते हैं|

कई बार अशौच के दौरान नवरात्र आता है|इसके कारण नवरात्र महोत्सव 9 के बजाय 8 दिनों से लेकर 1 दिन तक का भी हो सकता है|कई बार अशौच समाप्ति एंव नवरात्र समाप्ति एक ही दिन होती है|ऐसे समय नवरात्र स्थापन न करके दुसरे दिन पूजा,अभिषेक एंव समाराधना करें|कुछ लोग घर के ब्रम्हाचारी पुत्र से या उपाध्याय के हाथों से नवरात्र स्थापना करवाते हैं|ऐसे समय दूध-शक्कर का भोग लगाएं लेकिन घर में पकाए हुए अनाज का भोग न लगाएं|दुसरे घर का नैवेद्य अग्राह्या रहता है|कई बार नवरात्र शुरू रहते अशौच आता है|ऐसे समय ब्रम्हचारी लड़के या गरूजी द्वारा पूजा एंव माला-बंधन आदि करवा लें|नवरात्र स्थापना भी उनके द्वारा करवाएं|पके अन्न का नैवद्य न दिखाएँ|अशौच समाप्ति के बाद समाराधना करने में शास्त्र को एतराज नहीं रहता|

कुछ लोग अल्प ज्ञान के कारण खंडित कुलाचार अगले कुलाचार के समय करते हैं परन्तु यह बात शास्त्र सम्मत नहीं है|शारदीय नवरात्र खंडित होने से ज्येष्ठ गौरी का उत्सव चैत्रगौरी के समय और चैत्रागौरी का दोलोत्सव नवरात्र के समय करना शास्त्र सम्मत नहीं है,अतएव ऐसा न करें|नवरात्र कुलधर्म खंडित न करके नियमित करते रहने से उस देवता की पूर्ण कृपा परिवार पर बनी रहती है|इससे उस घर पर सहसा आध्यात्मिक,आधिदैविक एंव आधिभौतिक संकट नहीं मंडराते|यदि संकट आ भी जाए तो वह तीव्र न होकर सौम्य बनता है|जिस घर में चूल्हा है,वहां देवता स्थापन होना आवश्यक है|इसी तरह परिवार विभक्त होने पर नवरात्र को विभक्त रूप से संपन्न करना चाहिए|यदि पिता से पुत्र अलग रहता हो तो भी पिता एंव पुत्र के घर अलग-अलग नवरात्र होना आवश्यक है|

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