मन्त्र मूलतः वर्ण अथवा वर्णों का समूह ही है|मंत्रशास्त्र के प्रसिद्ध सिद्धांत ‘’अमन्त्रमक्षर नास्ति’’के अनुसार प्रत्येक अक्षर या वर्ण मन्त्र ही है| ‘’शिवसूत्र-विमर्शिनी’’में इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि-सभी मंत्र वर्णात्मक हैं और सभी वर्ण शिवात्मक हैं(मंत्रा वर्नात्मकः सर्वे,सर्वे वर्णाः शिवात्म्काः)|
आदौ भगवान शब्दराशिः|आदि भगवान परशिव को ‘शब्दमय’बतलाया गया है|प्रत्येक शब्द का सम्बन्ध किसी न किसी भाव से होता है| ‘’आदिमंत्रशास्त्र’’में भाव और भव की एकरूपता प्रदर्शित की गई है|इस दृष्टि से ‘शब्दमय’आदि भगवान् परशिव भाव और भव दोनों के वैभव से संपन्न है|
इसलिए अपनी अर्धांगिनी भवानी को मन्त्र की महिमा समझाते हुए वे कहते हैं-मंत्रो मद्रुपोवरानने|अर्थात हे सुंदरी!मन्त्र मेरा ही रूप है|मन्त्र विषयक ग्रंथों में ‘मन्त्र’शब्द की जो भिन्न-भिन्न व्युत्पत्तियाँ तथा परिभाषाएं प्रस्तुत की गई हैं,उनमे सबसे पहले ‘’निरुक्तकार’’यास्क की यह व्युत्पत्ति ‘’मन्त्रों मनना दुच्यते’’उल्लेख्य है|इस व्युत्पत्ति के अनुसार मनन करने योग्य शब्द-ध्वनि ही मन्त्र है|
तंत्रसार में कहा भी गया है-कि जिसके मनन(स्मरण,उच्चारण)आदि से संसार से उद्धार होता है,उसका नाम ‘’मन्त्र’’है|मन्त्र और देवता के सम्बन्ध का संकेत करने वाली एक महत्वपूर्ण व्युत्पत्ति इस प्रकार दी गई है-मंत्रो देवाधिष्ठितोअ्सावक्षर रचनाविशेष:|अर्थात देवता से अधिष्ठित अक्षर-रचना का एक प्रकार मन्त्र है|देवाधिष्ठित मन्त्र का चिंतन-मनन करने से हमें त्राण या रक्षण मिलता है|इस प्रकार मनन और त्राण का भाव प्रकट करने वाली मन्त्र की एक अन्य व्युत्पत्ति-मननात त्रायते इति मन्त्रः|यह सर्वाधिक प्रचलित और प्रसिद्ध व्युत्पत्ति है|
मंत्र का मनन जब मन और प्राण से होता है,तब उसमे ‘’चैतन्य’’उत्पन्न होता है|ऋग्वेद में-वायो त्वम् प्रत्यक्षं ब्रम्हासि|अर्थात प्राण को जगत का कारण ब्रम्ह माना गया है|मंत्रज्ञान तथा पंचकोश प्राण पर ही आधारित हैं|स्थूल दृष्टि से मन्त्र वर्ण-विशेष अथवा विविध वर्णों का समुच्चय है,किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से आदि भगवान् परशिव का स्वरुप है|प्रत्येक मन्त्र का सम्बन्ध किसी न किसी देव या देवी से होता है|जब हम श्रद्धा-भक्तिपूर्व अपने इष्टदेव के मन्त्र का चिंतन,मनन और रटन करते हैं,तब उसका प्रभाव हमारे शरीर के विविध केन्द्रों पर पड़ता है और उनमे अलौकिक उर्जा का संचार होता है|उस उर्जा के कारण हमारे आभा-मंडल में परिवर्तन होता है और प्रकृति के गूढ़ रहस्य एकेक करके खुलने लगते हैं|आध्यात्म-साधना में मन्त्र ही तो प्राणतत्व है,उसके आभाव में किसी साधना की सफलता की आशा करना दिवास्वप्न ही कहा जाएगा|
मंत्र बहुत प्रभावशाली होते हैं|ये मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करते हैं|इनमे दैवीय शक्तियां निहित रहती हैं,साथ ही मंत्रो के द्वारा किसी देवता की सिद्धि अथवा अलौकिक शक्ति की प्राप्ति भी की जा सकती है|