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मंगलाचरण स्तोत्रम्

॥ मंगलाचरण स्तोत्रम् ॥

स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम्।
वासारमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विध्नानाम्॥
उन गजवदन गणेश जी की जय हो, जिनके चरणकमल का स्मरण सम्पूर्ण विघ्नसमूह को उसी प्रकार नष्ट कर देता है जैसे सूर्य की रश्मि अंधकार को।
सुमुखश्चैवदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानानः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन इन बारह नामों का पाठ या श्रवण जो भी पुरुष विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, गृह से बाहर जाने पर, संग्राम अथवा संकट के समय करता है, उसे किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं होता है।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वाविघ्नोपशान्तये ॥
श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, चन्द्र के समान जिनका वर्ण है चतुर्भुज से शोभित प्रसन्नवदन उन देवदेव भगवान विष्णु जी का सर्व विघ्नों की निवृति एवं शान्ति के लिए ध्यान करना चाहिए।
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् ।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ॥
जो वशिष्ठ जी के प्रपौत्र, शक्ति के पौत्र, पराशर जी के पुत्र तथा शुकदेव जी के पिता हैं, उन निष्पाप, कालुष रहित, तपोनिधि व्यास जी की मैं वन्दना करता हूँ।
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे ।
नमो वै ब्रह्मनिधये वसिष्ठाय नमो नमः ॥
विष्णुरुपि व्यास जी अथवा व्यासरुप श्री विष्णु जी को मैं नमस्कार करता हूँ। वशिष्ठ वंशज ब्रह्मनिधि श्री व्यास जी को बारम्बार नमस्कार है।
अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः ।
अभाललोचनः शंभुर्भगवान् बादरायणः ॥
भगवान वेदव्यास जी बिना चार मुख वाले ब्रह्मा, दो भुजावाले विष्णु, और ललाट लोचन से रहित साक्षात भगवान शंकर जी हैं।
॥ इति मङ्गलाचरणं संपूर्णम् ॥

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