कालसर्प एक ऐसा योग है,जिसमे व्यक्ति जहा से चलता है,लौटकर वहीँ आ जाता है|कारोबार या नौकरी में व्यक्ति हजारों-लाखों कमाता है,और एक ही दिन में उसका कमाया धन नष्ट हो जाता है|तात्पर्य यह है कि यह वो योग है,जो सांप-सीढी के खेल में 99 आने पर सर्प काट लेता है और व्यक्ति जहाँ से चलता है,वहीँ लौट आता है|यों तो जीवन में लाभ हानि होते रहते हैं,किन्तु हानि स्थाई हो जाए,तो चिंता का विषय अवश्य हो जाता है|
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है-सुनहु भरत भावी प्रबल बिलख कहेउ मुनिनाथ|हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ||
अर्थात हानि लाभ,जन्म-मृत्यु,यश और अपयश इश्वर के हाथ में है|किसी ने कहा भी है, “न राई घटे न तिल रहा,बढ़ने का लिख दिया,विधाता लेख नहीं टालने का|”
विधाता के लेख को तो कोई काट ही नहीं सकता|किन्तु यदि आप ज्योतिष में विश्वास रखते हैं और आपकी कुंडली में कालसर्प योग है,तो इसकी शांति हेतु महाशिवरात्रि पर्व एक वरदान है|
जिन व्यक्तियों की कुंडली में कालसर्प योग या पितृदोष है,उन्हें इनके निवारण हेतु त्र्यम्बकेश्वर नासिक के पास भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन एंव विधि अनुसार पूजन करना चाहिए|इस दुर्योग से मुक्ति पाने के लिए श्रावण मास एंव शिवरात्रि से बढ़कर कोई अन्य मुहूर्त नहीं है|इस अवसर पर त्र्यम्बकेश्वर में ज्योतिर्लिंग पर मात्र एक बार रुद्राभिषेक कराने से कालसर्प योग से मुक्ति मिल जाती है|