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जन्माष्टमी का व्रत और जन्म कब करना चाहिए 2 या 3 सितंबर 2018 को?

🌷श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत निर्णय 🌷

गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी भगवान् श्रीकृष्ण जन्म से सम्बन्धित अष्टमी तिथियों के सम्बन्ध में स्मार्तो एवं वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायियों में मतान्तर होगा ।

—–विशेष—-
1-शास्त्रीय परम्परा अनुसार इस वर्ष रविवार 2 सितम्बर को ग्रहस्थ एवम सामान्य जनों के लिए कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत एवम रात्रि में जन्मोत्सव मनाया जाएगा ।।
2– साधु सन्यासियों एवम मथुरा वृंदावन में 3 सितम्बर दिन सोमवार को कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत एवम उत्सव मनाया जाएगा ।।

जिसका विस्तृत विवरण निम्नलिखित है…..!!

धर्म शास्त्रों की परम्परा अनुसार इस व्रत के विषय में दो मत हैं ।स्मार्त लोग (सामान्य गृहस्थी) अर्द्भुरात्रि-व्यापिनी एवं सप्तमीयुता अष्टमी में व्रत-उपवास एवं उत्सव करते हैं ।कयोंकि इनके अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का अवतरण अर्धरात्रि के समय (रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशिस्थ चन्द्रमा कालीन) भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि में हुआ था ।

जबकि बैष्णव (साधु-संन्यासी लोग) सम्प्रदाय के अनुयायी अर्धरात्रि-व्यापिनी अष्टमी की उपेक्षा करके नवमी विद्व अष्टमी में व्रत, उत्सवादि करने से विश्वास रखते हैं (चाहे उस दिन अर्धरात्रि के समय अष्टमी हो या न हो) !!

`स्मार्तानां गृहिणी पूर्वा पोष्या, निष्काम वनस्थेविधवाभी: बैष्णवैश्च परै वा पोष्या ।।
बैष्णवास्तु अर्धरात्रिव्यापिनीमपि, रोहिणी युतामपि सप्तमी विद्वां अष्टमी परित्यज्य नवमी युतैव ग्राह्मा ।। (धर्मसिन्धु:)

परंतु अधिकांश शास्त्रकारों ने अर्द्वरात्रि -व्यापिनी अष्टमी में ही व्रत, पूजन एवं उत्सव मनाने की पुष्टि की है ।

श्रीमद् भागवत्, श्रीविष्णु पुराण, वायु पुराण, अग्नि-पुराण, भविष्यादि पुराण भी तो अर्द्वरात्रि व्यापिनी अष्टमी में ही श्री कृष्ण भगवान् के जन्म की पुष्टि करते हैं ।।

देखे-गतेऽर्धरात्रसमये सुप्ते सर्वजने निशि ।।भाद्रेमास्य-सिरे पक्षेऽष्टम्यां ब्रह्मर्क्षसंयुजि सर्वग्रहशुभे काले-प्रसन्नहृदयाशये आविरासं निजेनैव रुपेण हि अवनीपते ।।
(विष्णु पुराण)

इसके अतिरिक्त धर्मसिन्धुकार का भी यही अभिमत है –
कृष्ण जन्माष्टमी निशीथ व्यापिनी ग्राह्मा । पूर्वदिन एवं निशीध योगे पूर्वा ।।

इस प्रकार सिद्धांन्तरुप में तत्काल-व्यापिनी (अर्द्वरात्रि के समय रहने वाली ) तिथि अधिक शास्त्रसम्मत एवं मान्य रहेगी ।
ध्यान रखे कुछ आचार्य तो केवल अष्टमी तिथि को ही जन्माष्टमी का निर्णायक तत्व मानते हैं ।
रोहिणी-युक्त होने से तो श्रीकृष्ण- जन्माष्टमी जयंती संज्ञक कहलाती है ।
कृष्णाष्टम्यां भवेद्यत्र कलैका रोहिणी यदि ।
जयंती नाम सा प्रोक्ता उपोष्या सा प्रयत्नत: ।(अग्नि पुराण)

भ्रमित न हो ध्यान रहे – भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-वृंदावन में तो वर्षों की परम्परानुसार भगवान् श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी व्रत एवं जन्मोत्सव के लिए सूर्योदयकालिक एवं नवमी विद्वा (युक्त) अष्टमी अपनाते हैं, जबकि उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सैकड़ों वर्षों से अर्द्वरात्रि एवं चन्द्रोदयव्यापिनी जन्माष्टमी ही व्रत, उत्सवादि हेतु ग्रहण करने की परम्परा है ।

इसलिए मथुरा की परंपरा को ध्यान में रखकर निर्णय न ले और न ही भ्रमित ही हो वो सिर्फ स्थान विशेष की परंपरा है ।।

विशेष – हिन्दू पंचांग के अुनसार भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को कृष्ण का जन्म हुआ था. इसलिए हर साल इसी तिथि पर और इसी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है.।

इस वर्ष भारतीय समयानुसार रविवार रात्रि को 08 बजकर 47 मिनट से लेकर अगले दिन सोमवार शाम 07 बजकर 19 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। रविवार को ही रोहिणी नक्षत्र रात्रि 08 बजकर 50 मिनट से लेकर सोमवार को रात्रि 08 बजकर 5 मिनट तक रहेगा, अतः रात्रि में अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र के होने से यह जन्माष्टमी कृष्ण जयन्ती के रूप में मनाई जाएगी जिसमें व्रत एवम दान पुण्य का अतीव पुण्यमयी महत्व शास्त्रो में वर्णित है ।।

निर्णय— 2 सितंबर को स्मार्त कृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे और 3 सितंबर को वैष्णवों के लिए कृष्ण जन्मोत्सव का त्योहार मनाया जाएगा।

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