मेजर सोमनाथ शर्मा भरतीय सेना के सर्वोच्च पुरुस्कार परमवीर से सम्मानित प्रथम भारतीय सैनिक है ।मेजर शर्मा को यह सम्मान जम्मू कश्मीर के बडगाम में आतंकियो से वीरतापूर्ण लोहा लेते हुए शहीद होने पर मरणोपरांत दिया गया।
परिचय :- मेजर शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के दध गांव में हुआ । सैनिक पिता के घर जन्मे मेजर शर्मा ने 22 फरवरी 1942 को सेना में कमीशन लिया तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा में अरकान अभियान मे जापान की सेना के खिलाफ युद्ध मे भाग लिया।बडगाम की लड़ाई :- 31 अक्टूबर 1947 को मेजर शर्मा की कुमाऊँ रेजिमेंट की D कंपनी को बडगाम जाने का आदेश मिला, मेजर शर्मा के हाथ मे प्लास्टर बंधा था क्योंकि उनको हॉकी खेलने के दौरान चोट लग गयी थी पर फिर भी उन्होंने अपनी कंपनी का नेतृत्व किया। 03 नवंबर 1947 को दोपहर 12 बजे गश्त के दौरान उनकी कंपनी पर लगभग 700 आतंकियों ने हमला कर दिया ओर उनकी कंपनी को तीन तरफ से घेर लिया ओर भयंकर गोलीबारी की लेकिन मेजर शर्मा ने अपनी पोस्ट को संभाले रखा क्योंकि उनको पता था अगर वो पीछे हट गए तो श्रीनगर एयरपोर्ट ओर शहरी क्षेत्र हाथ से निकल जायेगा।
7 के बदले 1 की संख्या में कम होने के बावजूद मेजर शर्मा की D कंपनी ने आतंकियों का डट कर सामना किया युद्ध के दौरान ही एक मोर्टार मेजर शर्मा के पास आ कर विस्फोटित हुआ और मेजर शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गए। मेजर शर्मा का पार्थिव शरीर तीन दिन बाद बहदवाश अवस्था में मिला। उनकी पहचान उनके पहने हुए लेदर के पिस्तौल होलस्टर ओर भागवद गीता के कुछ पन्नो से हुई जो वो हमेशा साथ रखते थे।
उनके ब्रिगेड हेडक्वार्टर में उनकी शहादत से पहले का संदेश आज भी अंकित है।
” दुश्मन 50 यार्ड की दूरी पर है हम संख्या में बहुत कम और गोलीबारी के बीच फँसे हुए है , लेकिन जब तक अंतिम गोली ओर आखिरी सैनिक बचा रहेगा मैं एक इंच भी पीछे नही हटूँगा।
ऐसे वीरतापूर्ण साहसिक कार्य के लिए भारत सरकार ने 21 जून 1951 को उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
By- सुनील शर्मा , रोड़ा नोखा।।