मन्त्रों में गायत्री मन्त्र को विशेष प्रभावशाली माना गया है|वैसे भी गायत्री मन्त्र अन्य मन्त्रों की तुलना में सबसे अधिक प्रचलित रहा है और इसके प्रति मानव की अगाध श्रद्धा भी रही है –भूर्भुव स्वः|तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गों देवस्य धीमहि|धियो यो नः प्रचोदयात्| इस मन्त्र की महिमा असीम है|समय-समय पर हमारे ऋषि-मुनि,तपस्वी,गुरु व् महान पुरुष इसका जप करते रहे है और इस मन्त्र से होने वाले अद्भुत लाभ का वर्णन करते हुए उन्होंने इस मन्त्र की महिमा का गान किया है|
भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से और भीष्म पितामह ने कौरव,पाण्डवों से इसकी महिमा का गान किया है और भगवान् श्रीकृष्ण ने तो यहाँ तक कह दिया की मन्त्रों में मै ही गायत्री हूँ|तीनों लोकों में कोई ऐसा नहीं,जिसने गायत्री मन्त्र की महिमा न गई हो|इससे मनुष्य की शारीरिक व आध्यात्मिक उन्नति होती है और मनुष्य वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है,तो उसे प्राप्त करना चाहिए|गायत्री मन्त्र एक सार्वभौमिक प्रार्थना है,जिसका प्रयोग और मनन संसार के समस्त प्राणी कर सकते हैं|यह उस दिव्य शक्ति को संबोधित प्रार्थना है,जिसके बल पर सूर्य प्रकाश देता है और जो तीनों लोकों में समाहित है|
मन्त्र का ध्येय बुद्धि को निर्मल,एंव तेजस्वी बनाना है|जिससे जीवन साधना श्रेष्ठ और सफल बन सके|यदि गायत्री मन्त्र का जाप व् मनन निरंतर किया जाए,तो उससे हमारे अन्दर छिपी अदभुत शक्तियां तीक्ष्ण और सूक्ष्म हो जाती हैं|गायत्री मन्त्र के जाप,चिंतन और अनुष्ठान से मनुष्य का कल्याण सर्वथा संभव है|विषय-वासनाओं के चक्र में फंसी हमारी मलिन बुद्धि भी इस जाप के प्रभाव से एक आलोकित मणि के सामान हो जाती है|
केवल गायत्री मन्त्र ही एकमात्र ऐसा जप है,जिसमे स्तुति,ध्यान,एंव वंदना तीनों का समन्वय है|ञगायत्री मन्त्र का जाप प्रातः,मध्याह्न् व संध्या तीनों समय करने से इसका अधिक लाभ होता है,क्योंकि सूर्य का तेज़ अपनी गति के अनुसार इन क्षणों में बुद्धि को सही दिशा देता है|यों गायत्री मन्त्र का जाप किसी भी समय,भोजन से पहले और बाद में गायत्री मन्त्र का जाप किया जाए,तो यह मानवीय कल्याण के लिए अति उत्तम होता है|यह मन की चंचलता,अस्थिरता और व्याकुलता शांत करने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होता है|