बीकानेर। साधासर में चल रही सप्तदिवसीय भागवत महाकथा व पंचकुंडीय रुद्रमहायज्ञ के तृतीय दिवस में भागवताचार्य परम पूज्य मोहन लाल जी व्यास नापासर वालो ने प्रह्लाद , गजेंद्रमोक्ष, आदि कथाओं पर प्रकाश डालते हुए भक्त के वश में है भगवान और भक्ति के द्वारा भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है बतलाया।

वही यज्ञाचार्य पं. बजरंग जी शास्त्री सोवा वालो ने रुद्रमहायज्ञ से होने वाले जीवन के प्रभावों को बतलाते हुए कहा कि यज्ञों की भौतिक और आध्यात्मिक महत्ता असाधारण है। भौतिक या आध्यात्मिक जिस क्षेत्र पर भी दृष्टि डालें उसी में यज्ञ की महत्वपूर्ण उपयोगिता दृष्टिगोचर होती है। वेद में ज्ञान, कर्म, उपासना तीन विषय हैं। कर्म का अभिप्राय-कर्म -काण्ड से है कर्मकाण्ड यज्ञ को कहते हैं। वेदों का है। यों तो सभी वेदमंत्र ऐसे हैं जिनकी शक्ति को प्रस्फुरित करने के लिए उनका उच्चारण करते हुए यज्ञ करने की आवश्यकता होती है।
यज्ञ के द्वारा जो शक्तिशाली तत्व वायु मण्डल में फैलाये जाते हैं उनसे हवा में घूमते हुए असंख्यों रोग के कीटाणु सहज ही नष्ट होते हैं। डी. डी. टी., फिनायल आदि छिड़कने, बीमारियों से बचाव करने की दवाएं या सुइयाँ लेने से भी कहीं अधिक कारगर उपाय यज्ञ करना है। साधारण रोगों एवं महामारियों से बचने का यज्ञ एक सामूहिक उपाय है।
यज्ञ द्वारा पृथक-पृथक रोगों की भी चिकित्सा हो सकती है। यज्ञ तत्व का ठीक प्रकार उपयोग करके अन्य चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले में अधिक मात्रा में और अधिक शीघ्रतापूर्वक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
यज्ञ द्वारा विश्वव्यापी पंच तत्वों की, तन्मात्राओं की, तथा दिव्य शक्तियों की परिपुष्टि होती हैं। इसके क्षीण हो जाने पर दुखदायी असुरता संसार में बढ़ जाती है और मनुष्यों को नाना प्रकार के आस सहने पड़ते हैं। देवताओं का—सूक्ष्म जगत के उपयोगी देवतत्वों का भोजन यज्ञ है। जब उन्हें अपना आहार समुचित मात्रा में मिलता रहता है तो वे परिपुष्ट रहते हैं और असुरता को, दुख दारिद्र को दबाये रहते हैं। इस रहस्यमय तथ्य को गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं श्रीमुख से उद्घाटन किया है।
यज्ञ में जिन मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है उन की शक्ति असंख्यों गुनी अधिक होकर संसार में फैल जाती है, और उस शक्ति का लाभ सारे विश्व को प्राप्त होता है। रेडियो ब्रॉडकास्ट करते समय वक्ता की वाणी को शक्तिशाली विद्युतधारा से शक्तिवान बना देते हैं तो वह आवाज संसार भर में रेडियो यन्त्रों पर सुनी जाने योग्य हो जाती है। मन्त्रोच्चारण के साथ यज्ञाग्नि की शक्ति बिजली की बैटरी, जनरेटर डायनेमो का काम करती है और मन्त्रशक्ति को प्रचण्ड करके सारे आकाश में फैला देती है। गायत्री मंत्र की सद्बुद्धि शक्ति को यज्ञों के द्वारा जब आकाश में फैलाया जाता है तो उसका प्रभाव समस्त प्राणियों पर पड़ता है और वे सद्बुद्धि से, सद्भावना से, सत्प्रवृत्तियों से अनुप्राणित होते हैं।
यज्ञ की ऊष्मा मनुष्य के अन्तःकरण पर देवत्व की छाप डालती है। जहाँ यज्ञ होते हैं वह भूमि एवं प्रदेश सुसंस्कारों की छाप अपने अन्दर धारण कर लेता है और वहाँ जाने वालों पर भी दीर्घ काल तक प्रभाव डालती रहती है। प्राचीन काल में तीर्थ वहीं बने हैं जहाँ बड़े-बड़े यज्ञ हुए थे। जिन घरों में, जिन स्थानों में यज्ञ होते हैं वह भी एक प्रकार का तीर्थ बन जाता है और वहाँ जिनका आगमन रहता है उनकी मनोभूमि उच्च सुविकसित एवं सुसंस्कृत बनती है। महिलाएं, छोटे बालक एवं गर्भस्थ बालक विशेष रूप से यज्ञ शक्ति से अनुप्राणित होते हैं। उन्हें सुसंस्कारित बनाने के लिए यज्ञीय वातावरण की समीपता बड़ी उपयोगी सिद्ध होती है।
कुबुद्धि, कुविचार, दुर्गुण एवं दुष्कर्मों से युक्त व्यक्तियों की भी मनोभूमि में यज्ञ से भारी सुधार होता है। इसलिए यज्ञ को पाप नाशक कहा गया है। यज्ञीय प्रभाव से सुसंस्कृत हुई विवेकपूर्ण मनोभूमि का प्रतिफल जीवन के प्रत्येक क्षण को स्वर्गीय आनन्द से भर देता है, इसलिए यज्ञ को स्वर्ग देने वाला कहा गया है।
यज्ञों की शोध की जाय तो प्राचीन काल की भाँति यज्ञ शक्ति से सम्पन्न आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, सम्मोहनास्त्र, आदि अस्त्र शस्त्र, पुष्पक विमान जैसे यंत्र, बन सकते हैं, अनेकों ऋद्धि सिद्धियों को उपलब्ध किया जा सकता है। लोक लोकान्तरों की यात्रा की जा सकती है। प्रखर बुद्धि सुसंतति, निरोगिता एवं सम्पन्नता प्राप्त की जा सकती है। प्राचीन काल की भाँति यज्ञीय लाभ पुनः प्राप्त हों इसकी शोध के लिए यह आवश्यक है कि जनसाधारण का ध्यान इधर आकर्षित हो और साधारण यज्ञ आयोजनों का प्रचार बढ़े।