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भगवान श्रीकृष्ण लोकप्रिय क्यों ?

श्रीराम बारह कला पूर्ण अवतार थे और श्रीकृष्ण सोलह कला से परिपूर्ण थे|संयोगवश जिस अवतार को जितनी अधिक लीलाएँ प्रकट करने का और जितनी अधिक कलाओं का प्रदर्शन का अवसर मिला,तदनुसार व्यव्हार में वह उतनी ही कला का कहा जाने लगा|राम और कृष्ण दोनों ही विष्णु के अवतार हैं|

इनके कुछ नाम तो ऐसे है,जो प्रत्येक अवतार के लिए प्रयुक्त होते हैं और कई संज्ञाएँ ऐसी हैं,जो उनके अवतार-विशेष के लिए ही प्रयुक्त होती है| ‘’अच्युत’’शब्द सामान्य भाव से तो विष्णु और उनके समस्त रुपवतारों से सम्बन्ध रखता है,किन्तु विशेषरूप से यह संज्ञा उनके ‘’कृष्ण’’नाम के लिए पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त होती है|

  भगवान् विष्णु के अवतारों में भगवान् श्री कृष्ण को सर्वाधिक कीर्ति मिली है|सामाजिक दृष्टिकोण से भगवान श्रीराम की अपेक्षा भगवान् श्री कृष्ण का चरित्र अधिक व्यापक और बहुआयामी है|भगवान श्रीराम अपने धीर-गंभीर स्वाभाव,मर्यादा-पालन ओए शांति-सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध है,वहीँ श्री कृष्ण अपनी वीरता,वाक्-चातुर्य,निति-कौशल,योग-साधना और रणनीति-पांडित्य के लिए सांसारिक-जनों के आराध्य हैं|\श्री कृष्ण का जीवन मानव-चरित्र के अनेक आयाम उद्घाटित कर्ता है|उनकी बाल-लीला,किशोर-चरित्र,राजनीति,युद्धनीति और योग-अध्यात्म में पारंगित बड़े-बड़े संत-माहात्माओं और दिग्गज विद्वानों का पथ-प्रदर्शन करती है|महाभारत के विश्व-विख्यात अंश ‘’गीता-प्रसंग’’को श्रीकृष्ण की ही देन मानकर सहस्त्रों जन कर्मयोग की प्रेरणा लेते हैं|युद्धक्षेत्र के मध्य अर्जुन की अकर्मण्यता और व्यामोह के निवारण में श्रीकृष्ण ही समर्थ हुए थे|महाभारत के अनेक प्रसंग उनकी नीतिमत्ता को उजागर करते हैं|

महाकवि सूरदास भगवान् श्री कृष्णा के अनन्य भक्त थे|महाप्रभु वल्लभाचार्य और विट्ठल नाथ जी की गणना श्री कृष्णा-भक्तों की अग्रिम-पंक्ति में होती है|राजस्थान की रानी मीराबाई अपनी अनन्य कृष्ण-भक्ति के कारण ही विश्व प्रसिद्ध हुई|

भगवान श्री कृष्ण भारतीय संस्कृति के महान दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे|उनके चरित्र का वर्णन अनेक ग्रंथों में अनेक रूपों में आया है|उनके विचार बड़े दार्शनिक थे|उन्होंने सदैव न्याय का पक्ष लिया और संभवतः इसी कारण उन्होंने पाण्डवों का साथ दिया था|

श्रीकृष्ण ने कहा,जीवन में शंतिभाव बनाए रखने के लिए सुख-दुःख,लाभ-हानि,जय और अजय में समता भाव रखो|न किसी में राग रखो और न द्वेष|भागवत क्व दसवें सूत्र में श्रीकृष्ण ने कहा,’’सुख और दुःख देने वाला कोई और नहीं,मनुष्य अपने कर्मों का फल स्वयं भोगता है|’’

श्रीकृष्ण ने अपने पार्थिव शरीर को इस संसार में बचा रखने की इच्छा नहीं की|इससे उन्होंने यह बताया कि इस मनुष्य शरीर से मोह न करना ही आत्मनिष्ठ पुरुषों के लिए आदर्श है|श्रीकृष्ण गोपालक थे और हर प्राणी से स्नेह रखते थे|वे राजनीतिज्ञ ही नहीं,दुराग्रही भी थे|यही उनके लोकप्रियता का कारण है|

भगवान् श्रीकृष्ण अहिंसा के पुजारी थे|अंत समय में जब व्याध ने गलती से उनके पैर में तीर मारा तो उन्होंने व्याध को भी आशीर्वाद के वचन कहे|ऐसा भागवत में भी वर्णन आया है|उनकी आत्मा में महान शक्ति थी|प्रत्येक व्यक्ति को उनके समान क्षमाभाव रखना चाहिए|महान व्यक्ति वो ही बन सकता है जो दूसरों की गलतियों को क्षमा कर दे|

आध्यात्मिक जगत में कृष्णोपासना को बहुत ही सम्मान प्राप्त है|श्रीकृष्ण की स्तुतियाँ,मन्त्र,पद,भजन आदि करते-पढ़ते लोग तन्मय हो जाते हैं|ब्रजभूमि में तो आज भी कण-कण में कृष्ण-कन्हैया की झलक दृष्टिगोचर होती है|भाद्रपद मास में कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है|इस दिन व्रत करने का विधान है|शास्त्रों में बताया गया है कि श्रीहरी के अवतार काल में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए|श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण में सावित्री द्वारा पूछने पर धर्मराज ने बताया कि भारतवर्ष में रहने वाला जो भी प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत कर्ता हा,वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है|वह दीर्घकाल तक बैकुंठ लोक में आनंद भोगता है,फिर उत्तम योनी में जन्म लेने पर उसमे भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है|यदि उस दिन बुधवार हो,तो उसके फल का तो कहना ही क्या?यदि ऐसा अष्टमी,नवमी के साथ संयुक्त हो,तो कोटि कुलों को मुक्ति देने वाली होती है|

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