यहाँ से 30 किमी.दूर बेरासर गाँव ऐतिहासिक रहा है|बेरासर गाँव में अनेक जातियां निवास करती है|जाटों की संख्या अधिक है|माहेश्वरी समाज के व्यवसायी गाँव छोड़कर चले गए|गिने चुने परिवार ही बेरासर कुकणिया में निवास करते हैं|माहेश्वरियों में कोठारी,मालाणी भट्टड,राठी.झंवर है|कोठरियों को चौधरी की उपाधि बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी ने प्रदान की थी नव गंगाराय कोठारी चौधरी थे|उनके तत्कालीन आई.जी.ठा.जसवंतसिंह से उनके गहरे सम्बन्ध थे|बीकानेर राज दरबार में भी कोठारी की पैठ थी|इस क्षेत्र में हिमट्सर के सेठ जगनाथ बजाज को भी चौधरी की पदवी बीकानेर दरबार की तरफ से प्रदान की गई थी|16 वीं 17 वीं सदी में इस क्षेत्र में डाकुओं का बड़ा आतंक था वे बनियों को डराते धमकाते व लूट लिया करते थे|तंग आकर बनियों ने अपने घर छोड़कर नोखा या अन्य नै आबादी हो रही मंडियों में अपना व्यवसाय खोलकर घर बना लिए|लेकिन उन्होंने अपने गाँव के प्रति हमेसा लगावा रखा|गाँव को ‘जिमाने’(भोजन) की परंपरा आज भी कायम है|वे कहीं भी रहते हो लेकिन गाँव वालों के साथ बैठकर भोजन करने की परंपरा आज भी निभाई जाती है|उनके खेत खलिहान भी बेरासर में है|उनके टूटे फूटे मकान झोंपड़े पुरानी साल(कमरे)गाँव में स्थित है वे अपनी मातृभूमि से अलग नहीं हुए हैं|बेरासर के व्यवसायी घरानों ने अपने व्यवसाय भी बुलंदियों को छुआ है|बेरासर के माहेश्वरियों ने कलकता,मुंबई,गुजरात,सूरत,आसाम सहित अनेक महानगरों में व्यवसायिक प्रतिष्ठा बनाई है|वे कभी भी अपने गाव बेरासर को नहीं भूलते|बेरासर की जागीर राजपूत ठाकुरों के अधीन रहीं|बेरासर के बीच भुतियाँ कुएं के पास रामदेव जी का मंदिर है|जिसे गिरी समाज के लोग सँभालते है धुपबती करते हैं|बेरासर के तीन बास है कुकणियां,बख्तावरपुरा और बेरासर तीनों ही राजस्व रिकॉर्ड में ‘रेवेन्यु विलेज’माने गए हैं|बेरासर गाँव 17 वीं सदी का माना जाता है|लोक आस्था के प्रतिक रामदेवजी महाराज कक्कू गाँव के सवाई सिंह राजपूत गहलोत यहाँ आए थे|जिन्होंने भयभीत ग्रामीणों को ‘भुतहा कुएं’के डर से मुक्त किया|
गाँव पहले सिन्धु गाँव की तरफ बसा हुआ था जहाँ आज भी बस्ती के भग्नावशेष मिलते हैं|सवाई सिंह जी ने उन्हें कुवे के पास बसने के लिए कहा तभी से यह गाँव तीन बसों के रूप में स्थित है|सवाई सिंह जी के बारे में कहा जाता है कि उन्हें रामदेवजी के साक्षात् दर्शन दिए और एक कटोरा भी दिया|चमत्कार भी दिखाए उसके बाद भेड़ बकरी चराने वाले सवाई सिंह जी को आत्म ज्ञान हुआ और वे लोक कल्याण की भावना से बेरासर के भूतिया कुवे पर आए|उन्होंने भूतों के भय से मुक्त होने की बात कहकर गाँव के लोगों को विश्वास दिलाया|उन्होंने कुवे के पास ही रामदेव जी के मंदिर की स्थापना की|कहते हैं सवाई सिंह जी ने जीवित समाधि ली थी जी कालड़ी गाँव में है|उन्हें वहां भी पूजा जाता है|लोक आस्था के इस रामदेवजी मंदिर में रामदेवजी के सैंकड़ो वर्ष पुराने पगलिये स्थित है|मंदिर परिसर में भी भैरव प्रतिमा दीवार में गड़ी है|जिसे लोक आस्था विश्वास के साथ पूजते हैं मंदिर में सवाई सिंह जी,बुधगिरी,रायसिंह,तेजगिरी ,विचारागिरी,की जीविन्त समाधियाँ है|मंदिर परिसर में वीर राव दूजा की देवली भी स्थित है जो 15 वीं शताब्दी की बताई जाती है|
बेरासर गाँव में रेबारी जाती के लोग भी रहते हैं जिनके पास ऊँटों के टोले हुआ करते थे अच्छी नस्ल के ऊँटों का व्यापार बेरासर के आस-पास गाँव तक होता था|रेतीले धोरे के बिच बसे गाँव में ऊँट ही उपयोगी आवागमन का साधन था|पुराने ज़माने में लोग ऊँटों पर ही आया जाया करते थे|डाकुओं का पीछा करने के लिए बीकानेर सेना के पास ऊंट ही साधन थे|बेरासर में डकैतों का हर समय भय रहता था इसलिए बीकानेर राज्य की तरफ से यहाँ के जान्गीरदारों को ऊंट सवार हथियार बंद राजपूत बहादूर सिपाहियों की नियुक्ति की गई थी|बेरसर गाँव व्यवसाय खेती पशुधन के लिए काफी मजबूत थी|