बाईं सूंड के गणपति के विषय में धार्मिक ग्रंथों में बहुत कम विवरण मिलता है|गणेशजी के विभिन्न ध्यानों में भी वैसा स्पष्ट उल्लेख नहीं है|इसी कारण कुछ बुजुर्गों,जानकारों एंव गणेश भक्तों द्वारा प्राप्त जानकारी पर निर्भर रहना पड़ता है|गणेश पंथी साधक गणपति देवता के विषय में सूक्ष्म विचार करते पाए जाते हैं|उनकी राय में पार्वती द्वारा निर्मित गणेश महागणपति का आह्वान किया|यह महागणपति सृष्टि निर्माण होने के पूर्व निर्गुण और कूटस्थ रूप में आया महातत्व है|इस महागणपति ने विविध प्रसंगों पर विभिन्न प्रकार के अवतार लेकर दुष्टों का संहार एंव सृष्टि का प्रतिपालन किया|
महाराष्ट्र के अष्टविनायकों में से लेण्यादरी के गिरीजात्मक स्वरुप को गणेश अवतार एंव अन्य सात को महागणपति कहा जाता है|जब विशेष सिद्धि अथवा निखिल मोक्ष प्राप्ति के लिए गणेश जी की आराधना की जाती है|तब बाईं सूंड का गणपति लेने की प्रथा है|परन्तु ऐसे अवसरों पर जो गणपति लिया जाता है,वह पार्थिव होता है|कहीं-कहीं पर सोने-चांदी के बाईं सूंड के गणपति भी देखने में आते हैं|परन्तु बाएँ सूंड के गणपति के पीछे भी उच्च स्तरीय कामना होने से घर के पवित्र वातावरण एंव सात्विक आहार आदि बातों का पालन दक्षता पूर्वक किया जाता है|लेकिन कई बार यह भक्ति प्रीति के अंतर्गत न होकर भय के अधीन होती है|इसी कारणवश विभिन्न भ्रांत धारणाओं का प्रचार होता है|
समाज में यह भ्रान्ति व्याप्त है कि कड़े आचार का पालन न करने से बाईं सूंड का गणपति सर्वनाश करता है|वस्तुतः कड़े आचार का पालन न किये जाने से देवमूर्ति में स्थित देवत्व कम हो जाएगा परन्तु तथाकथित अतिरंजित परिणाम नहीं होंगे|वैसे इसका कोई शास्त्राधार नहीं है और न ही ऐसा कोई अनुभव प्राप्त हुआ है|यदि घर में बाईं सूंड के गणपति की मूर्ति हो और वहां वहां उपद्रव होते हो तो उसके अन्य कारण भी हो सकते हैं|उसके लिए गणपति को जिम्मेदार ठहराने का कोई अर्थ नहीं है|यदि गणपति की सूंड की नोक उसके बाईं ओर हो तो वह सिद्धि विनायक और दाई ओर हो तो रिद्धि विनायक कहलाता है|सिद्धि विनायक का पूजन विधिविज्ञों से समझ लेना चाहिए|