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पुरुषोत्तम मास (अधिकमास या मलमास): (18 सितंबर से 16 अक्टूबर)में क्या करें क्या न करें।

पुरुषोत्तम मास (अधिकमास या मलमास): (18 सितंबर से 16 अक्टूबर)

हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त महीने का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस माह का अति विशेष महत्व है। संपूर्ण भारतवर्ष में धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से कई गुना अधिक फल मिलता है। वर्ष में 365 दिन भक्ति = 1 कार्तिक महीने में भक्ति का दिन; तथा कार्तिक महीने में भक्ति के 30 दिन = पुरुषोत्तम माह में भक्ति के 1 दिन। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी निष्ठा, श्रद्धा और यथाशक्ति से इस मास में भगवान पुरुषोत्तम को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि यह माह इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है, तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों और किस कारण से इसे इतना पवित्र माना जाता है? इस एक माह को तीन विशिष्ट नामों से क्यों पुकारा जाता है? इसी तरह के तमाम प्रश्न स्वाभाविक रूप से हर जिज्ञासु के मन में आते हैं। तो आज ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर और अधिकमास को गहराई से जानते हैं।

भगवतगीता पाठ करें; भागवत कथा सुने या खुद पढ़े; कृष्ण को रोज घी का दीपक लगाए और हरि/विष्णु /कृष्ण/ राम नाम का जप करें। इस मास में अधिक से अधिक महा मंत्र का जप करे।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥

हर तीन साल में क्यों आता है अधिकमास:

वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय ज्योतिष में सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

पुरूषोत्तम मास क्यों और कैसे पड़ा नाम:
अधिकमास के अधिपति स्वामी परम भगवान कृष्ण माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान कृष्ण का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान कृष्ण से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान कृष्ण ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया।

पुरुषोत्तम मास हर व्यक्ति के लिए विशेष है:
अधिकमास को पुरूषोत्तम मास कहे जाने का एक सांकेतिक अर्थ भी है। ऐसा माना जाता है कि यह मास हर व्यक्ति विशेष के लिए तन-मन से पवित्र होने का समय होता है। इस दौरान श्रद्धालुजन व्रत, उपवास, ध्यान, योग और भजन- कीर्तन- मनन में संलग्न रहते हैं और अपने आपको भगवान के प्रति समर्पित कर देते हैं। इस तरह यह समय सामान्य पुरूष से उत्तम बनने का होता है, मन के मैल धोने का होता है। यही वजह है कि इसे पुरूषोत्तम मास का नाम दिया गया है।

अधिकमास का पौराणिक आधार क्या है:

अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।

अधिकमास का महत्व क्या और क्यों है:

सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।

अधिकमास में क्या करना उचित और संपूर्ण फलदायी होता है:

आमतौर पर अधिकमास में श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं ।

👉इस मास में धार्मिक कार्यक्रम श्रीमद्भागवत, श्रीरामचरितमानस श्रीमद् गीता, हवन पूजन, अनुष्ठान, दान, पुण्य, धर्म-कर्म तीर्थों की यात्रा, तीर्थों में स्नान, नदियों में स्नान, देव दर्शन, परिक्रमा जैसे महान धार्मिक कार्य करने से करोड़ों गुना फल देने वाला होता है.

👉वेद एवं शास्त्रों में लिखा है कि इस महीने में गोदान, जल दान, अन्न दान, वस्त्र दान, पुस्तक दान, भूमि दान, सोना चांदी धातु का दान, या आर्थिक दान जैसे महान कार्य पुण्य के कामधेनु के समान हो जाता है…

👉स्वयं भगवान विष्णु का यह महीना है, इस माह में पवित्र रह कर पुण्यो का संचय करना चाहिए, इसीलिए भगवान ने स्वयं ने इसका नाम पुरुषोत्तम मास रखा है, जो अपना जीवन सुधारना चाहता है एवं परमात्मा का आशीर्वाद एवं मोक्ष गति प्राप्त करना चाहता है उन सभी को इस मास में धार्मिक कार्य करने चाहिए…

👉इस महीने में मंत्रजाप करने से करोड़ों गुना फल मिलता है, तीर्थ के किनारे, नदी के किनारे, मंदिर के पास, पीपल के वृक्ष या बट वृक्ष बिल्व पत्र के वृक्ष के पास जाप करना श्रेष्ठ एवं शुभ बताया गया है..

👉वृक्ष लगाना, मंदिर बनवाना, हवन यज्ञ अनुष्ठान करना, एवम् बद्रीनारायण, केदारनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम्, द्वारकाधीश दर्शन, एवं चौबीस अवतारों का आशीर्वाद प्राप्त करने का पुरुषोत्तम मास ही सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, आइए आप और हम सब मिलकर अपने जीवन में धार्मिक कार्य करके अपने आपको एवं समस्त देश समाज व परिवार को सन्मार्ग की ओर ले जाकर परिवार में सुख समृद्धि एवं जीवन में सुख शांति एवं अंत में मोक्ष प्राप्ति की इच्छा रखनेवाले पुरुषोत्तम मास में सत्कर्म करते है।

✍️यज्ञाचार्य रामगोपाल शास्त्री

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