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आंवला नवमी

यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को,आंवला नवमी नाम से विख्यात है|सतयुग का प्रारम्भ भी इसी दिन हुआ था|इसी तिथि को गौ,सुवर्ण वस्त्र आदि दान देने से ब्रह्म हत्या जैसे महापातक से भी छुटकारा मिल जाता है|इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है|पूजन विधान में प्रातः स्नान करके शुद्धात्मा से आंवले के वृक्ष के निचे पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करना चाहिए|फिर उसकी जड़ में दुग्ध धारा गिराकर चारों ओर कच्चा सूत लपेंटे तथा कपूर वर्तिका से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करें|आंवला वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन तथा दान देने का विशेष फल है|

व्रत की कथा

काशी नगरी में एक बहुत धर्मात्मा,दानी तथा निःसंतान एक वणिक रहता था|वे पति-पत्नी दोनों संतान के अभाव में दिनों दिन कातर तथा मलीन होते जाते थे|कुछ समय पश्चात वैश्य की पत्नी से एक ने कहा कि-यदि तुम किसी पराये लड़के की बलि भैरव के नाम से कर दो तो यह पुत्र कामना अवश्य पूरी हो जाएगी|यह बात वैश्य के पास भी पहुंची,मगर उसने अस्वीकार कर दिया|लेकिन सखी की बात वैश्य की पत्नी भूली नहीं,मौके की तलाश करती रही|एक दिन एक लड़की को भैरों देवता के नाम पर कुँए में गिरकर बलि दे दी|इस हत्या का परिणाम बड़ा उल्टा हुआ|लाभ की जगह उसके सारे बदन में कोढ़ बहने लगा तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी|

ऐसी परेशानी देखकर वैश्य ने इसका कारण अपनी पत्नी से पूछा-तब उसने सारी कहानी शुरू से आखिरी तक कह सुनाई|ऐसा जानकर वैश्य ने हत्यारिन!पापिन!आदि शब्दों से उसे काफी मर्माहत किया तथा बताया कि गोवध,ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं भी ठिकाना नहीं|इसलिए तु गंगा तट पर जाकर स्नान,वंदन कर,तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है|वैश्य पत्नी ने ऐसा ही किया|गंगा किनारे रहने लगी|थोड़े ही दिन बीते थे कि एक दिन गंगा जी वृद्धा स्त्री का रूप बनाकर आई और कहने लगी-हे दुखिया!तू मथुरा नगरी में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत रखना तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा करते हुए पूजा करना|यह व्रत करने से तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जायेंगा|घर आकर अपने पति से उसने सब बात बताई और आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिवत व्रत रखकर पूजन किया|ऐसा करने से भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई और पुत्र-लाभ कर,गोलोक को प्रस्थान किया|

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