अग्नि पृथ्वी पर सूर्य की प्रतिनिधि है|सूर्य जगत की आत्मा तथा विष्णु का रूप है|अतः अग्नि के समक्ष फेरे लेने का अर्थ है-परमात्मा के समक्ष फेरे लेना|अग्नि ही वह माध्यम है जिसके द्वारा यज्ञीय आहुतियाँ प्रदान करके देवताओं को पुष्ट किया जाता है|इस प्रकार अग्नि के रूप में समस्त देवताओं को साक्षी मानकर पवित्र बंधन में बंधने का विधान धर्म शास्त्रों में किया गया है| वैदिक नियमानुसार विवाह के समय चार फेरों का विधान है|इनमे से पहले तीनों फेरों में वधि आगे चलती है जबकि चौथे फेरे में वर आगे चलता है|ये चार फेरे चार पुरुषार्थों-धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष के प्रतिक हैं|इस प्रकार तीन फेरों द्वारा तीन पुरुषार्थों में वधु(पत्नी)की प्रधानता है जबकि चौथे फेरे द्वारा मोक्ष मार्ग पर चलते समय पत्नी को वर का अनुसरण करना पड़ता है|यहाँ इस बात को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि अपवादों से नियम नहीं बना करते|
