Latest
Home / News / जप कैसे करें?

जप कैसे करें?

जप के मुख्यतः चार प्रकार हैं-पहला वैखरी,दूसरा उपांशु और तीसरा पश्यन्ति और चौथा परा|किसी भी परश्चरण के लिए मानसिक जप की ही आवश्यकता रहती है|कोई भी मन्त्र एकदम मानसिक रीति से नहीं जपा जा सकता है|इसके लिए प्रारंभ में उस मन्त्र को वैखरी से ही जपना चाहिए|वैखरी जप का अर्थ है-जोर से बोला जाने वाला मन्त्र|वैखरी जप का सम्बन्ध मानव के जड़ शरीर से है जबकि उपांशु जप(गुनगुनाना)का सम्बन्ध मानव के वासना शरीर से है|पश्यन्ति यानी जबान न हिलाते हुए किए जाने वाले जप का सम्बन्ध मानव के मनोदेह से है|लेकिन इसकी अनुभूति पप्रगत अवस्था में ही होती है|जो मानव के सभी कोशों को व्याप्त करता है|परा वाणी से किया गया जप रक्तपेशी से अभिन्न हो जाता है तथा मानव के सभी कोशों को व्याप्त करता है|इसलिए परा वाणी द्वारा जप करने वाले साधक के श्वास से भी उस जप का उच्चारण होता है|

सामान्य रूप से वैखरी द्वारा चालीस हज़ार जप करने के बाद उपांशु जप की योग्यता आती है|इसी तरह उपांशु का चालीस हज़ार जप करने से पश्यन्ति जप की पात्रता आती है|यदि आवश्यक योग्यता प्राप्त न होने पर जप किया जाए तो मन एंव वाणी थक जाती है|और शरीर में थकावट महसूस होने लगती है|यदि जप करने से उत्साह महसूस हो तो जप करने की योग्यता प्राप्त हो गई-ऐसा समझें|इसलिए जप संख्या एकदम नहीं बढ़ानी चाहिए|क्रमशः धीरे-धीरे जप संख्या बढ़ने से काफी लाभ होता है|इसके लिए लघु पुरश्चरण,मध्यम पुरश्चरण एंव महापुरश्चरण दिए गए हैं|सदैव पहले लघु पुरश्चरण,उसके बाद मध्यम पुरश्चरण और अंत में महापुरश्चरण करने चाहिए|अनेक महापुरश्चरणों के बाद परा को पहुंचा हुआ मन्त्र मानव के अन्नमय कोष से आनंदमय कोश तक के सभी कोश व्याप्त कर लेता है|

Check Also

astro welfare

2022 में ऋक् उपाकर्म (श्रावणी पूर्णिमा) शुक्ल-कृष्ण-यजु -उपाकर्म रक्षाबंधन कब और क्यों?

1.ऋक् उपाकर्म (श्रावणी पूर्णिमा) श्री मार्तंड,निर्णयसागर,त्रिकाल,भास्कर आदि पंचान्गानुसारेण| ऋग्वेदियों के इस उपाकर्म (ऋक् उपाकर्म)के तीन …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!