काल सर्प दोष विवाद का विषय है|इस योग के दुष्परिणाम एंव उनके अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन की अनदेखी किये जाने पर भी एक बात निर्विवाद रूप से माननी पड़ती है की इस योग में निश्चित रूप से तथ्यांश है|इसका कारण यह है कि कालसर्प योग में जन्मे व्यक्ति का कोई न कोई पक्ष कमजोर रहता है|अविरत कष्ट सहने के बावजूद यश प्राप्ति न होना तथा स्थिरता का अभाव होना आदि कालसर्प योग के प्रमुख लक्षण हैं|
यह योग तब होता है जब राहू और केतू के एक ओर सभी गृह आ जाते हैं|नक्षत्र,गृह,राहू-केतू का उल्टा भ्रमण तथा स्थानों के क्रमानुसार अनंत,कुलिक और वासुकी आदि 12 तरह के कालसर्प योग हैं|इसके दुष्परिणामों के सम्बन्ध में मत भिन्नता न होते हुए भी कालसर्प दोष निवारक उपायों में मत भिन्नता पाई जाती है|महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश,आन्ध्र प्रदेश,तथा कर्नाटक आदि प्रान्तों में इस योग की शान्ति करने का प्रावधान है|मनः पूर्वक श्रद्धा के साथ शांति कर्म करने पर कालसर्प योग के दुष्परिणाम दूर होकर जातक के आत्मबल में वृद्धि होती है|
कालसर्प दोष के जातक दुर्भाग्यशाली होते हैं,ऐसी ग़लतफहमी समाज में व्याप्त है|परन्तु सूक्ष्म निरिक्षण करने से यह बात ध्यान में आती है कि यह योग आध्यात्मिक दृष्टि से उच्च कोटि का है|ऐसे लोगों को सुख-दुःख,मान-अपमान,तथा उन्नति-अवनति आदि के बारे में परस्पर विरोधी अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है|वे हमेशा आह्वानात्मक जीवन जीते हैं|इस योग की छाया से युक्त कुंडली वाले जातक सच्चे अर्थों में स्थितप्रज्ञ योगी होते हैं|यदि विवाह निश्चिती के समय लड़का या लड़की की कुंडली में कालसर्प योग हो तो उसे त्याज्य अथवा अग्राह्य न समझकर उसका स्वागत करना चाहिए|ऐसे लोग आह्वानात्मक जीवन जीकर देश,परिवार,और समाज के लिए उपयोगी होते हैं|