कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी कहा जाता है|इस दिन को तुलसी विवाह के रूप में भी माना जाता है|ऐसा कहा जाता है कि भाद्रपद की एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस को मारकर भारी थकावट से शयन कर कार्तिक शुक्ल एकादशी को नयनोंमिलित किये थे|इस तिथि के बाद ही शादी-विवाह आदि शुभ कार्य होने शुरू हो जाते हैं|इस बार यह एकादशी 8 नवम्बर शुक्रवार को है|इस दिन कई लोग व्रत रख भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना करते हैं|देवउठनी एकादशी को जान,पुण्य करना भी काफी फलदायी माना जाता है|माना जाता है की इस दिन सभी देवता अपनी निद्रा से बाहर आ जाते हैं|12 जुलाई को देवशयनी एकादशी थी जिस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं|इस दौरान भगवान शिव सृष्टि के पालक होते हैं|भगवान विष्णु के निंद्रा में जाते ही सभी तरह के मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं जो कि देवउठनी एकादशी से फिर से आरम्भ हो जाते हैं|
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
-एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरू कर देना चाहिए|
-इस दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएँ और पूरे घर की सफाई कर लें|
-इसके बाद स्नानादि करके साफ़ वस्त्र धारण कर लें|पूजा के लिए एक साफ़ चौकी पर पिला कपडा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करें|
-भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं|उन्हें पीले कपड़े,पीले फूल,नवैद्य फल,मिठाई,बेर और गन्ना अर्पित करें|
-भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और रात के समय घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीया जरुर जलाएं|
-अंत में भगवान विष्णु की आरती उतार कर उन्हें भोग लगाएं|
-देवउठनी ग्यारस के दिन इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवों को जगाएँ|
‘‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निंद्रा जगत्पतये|
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्||
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव|
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः||
शरदानी च पुष्पाणि गृहाण मम केशव|
देवोत्थान एकादशी व्रत कथा
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे|प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था|एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला-महाराज!कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें|तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है,रख लेते हैं|किन्तु रोज तो तुम्हे खाने को कुछ मिलेगा पर,एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा|उस व्यक्ति ने उस समय हाँ कर ली,पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिडगिडाने लगा-महाराज!इससे मेरा पेट नहीं भरेगा|मैं भूखा ही मर जाऊंगा|मुझे अन्न दे दो|
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई,पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ|तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए|वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा|जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा-आओ भगवान!भोजन तैयार है|पन्द्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज!मुझे दुगुना सामान दीजिये|उस दिन मै भूखा ही रह गया|राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं|इसलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता|यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ|वह बोला-मै नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाना खाते हैं|मैं तो इतना व्रत रखता हूँ,पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए|राजा की बात सुनकर वह बोला-महाराज!यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें|राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया|उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा,परन्तु भगवान न आए|अंत में उसने कहा-हे भगवान!यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा|लेकिन भगवान नहीं आए,तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा|प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे|खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए|यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता,जब तक मन शुद्ध न हो|इससे राजा को ज्ञान मिला|वह भीं मन से व्रत उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ|