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सूर्य षष्ठी व्रत विधि व कथा

कार्तिक मास की शुक्ल षष्ठी को यह व्रत मनाया जाता है|इस दिन सूर्य देवता की पूजा का विशेष माहात्म्य है|इसे करने वाली स्त्रियाँ धन-धान्य,पति-पुत्र तथा पुत्र समृद्धि से परिपूर्ण तथा संतुष्ट रहती है|चर्म रोग और आँख की बीमारी से भी छुटकारा मिल जाता है|पूजन तथा अर्ध्यदान देते सूर्य किरण अवश्य देखनी चाहिए|पूजन विधि में फल,पकवान,मिष्ठान,आदि का महत्व है|

 सूर्य षष्ठी कथा

प्राचीन समय में बिन्दुसर तीर्थ में महीपाल नाम का एक वणिक रहता था|वह धर्म-कर्म देवता विरोधी था|एक बार उसने सूर्य भगवान की प्रतिमा के सामने होकर मल-मूत्र त्याग किया|जिसके परिणाम स्वरुप उसकी दोनों आँख जाती रही|एक दिन अपने आततायी जीवन से ऊब कर गंगा जी में कूदकर प्राण देने का निश्चय कर चल पड़ा|रास्ते में उसे ऋषिराज नारदजी मिले और पूछा-कहिये सेठ?कहाँ जल्दी-जल्दी भागे जा रहें हैं?अँधा सेठ रो पड़ा और सांसारिक सुख-दुःख की प्रताड़ना से प्रताड़ित हो प्राण त्याग करने का इरादा बतलाया|

मुनि दया से गद्गद होकर बोले-हे अज्ञानी!तु प्राण त्याग मत कर!भगवान सूर्य के क्रोध से तुम्हे यह दुःख भुगतना पड़ रहा है|तू कार्तिक मास की सूर्य षष्ठी का व्रत रख तेरा दुःख दरिद्र मिट जायेगा|वणिक ने वैसा ही किया|तथा सुख-समृद्धि पूर्ण दिव्य ज्योति वाला हो गया|

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