बारह मासा व्रत अर्थात एक वर्ष पर्यंत चलने वाला व्रत, ये व्रत भी मार्गशीर्ष कृष्ण (दशमी) महीने से ही प्रारंभ होता हैं | कुछ लोग वैतरणी तथा बारह मासा का व्रत एक साथ ही कर लेते है, इस व्रत में एक वर्ष तक एक समय भोजन करना चाहिए तथा एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या, व्यतिपात (बितिबात) निराधारा रहना चाहिए| वर्ष पर्यन्त तुलसी की माला से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का जप करते हुए लड्डू गोपाल जी का पूजन करना चाहिए |
विधि-
मार्गशीर्ष – में मूंग का सेवन न करे
पौष – नमक (अलूना)
माघ – ठन्डे पानी से स्नान करना चाहिए (सुख सहेज का दान करे)
फाल्गुन – फाग ना खेले (ठाकुर जी को खेलाए)
चैत्र – गणगौर पूजन (16 कन्या भोजन करवाए)
वैशाख – बड पीपल का पूजन करे, (चांदी का बड व पीपल बनवाकर ब्राह्मण को दान करे)
ज्येष्ठ – प्याऊ आदि लगवाए या गरीबों में पानी का दान करे (बिना चप्पल रहे व जरुरत मंदों को चप्पल जुते दान करे)
आषाढ़ – पंखा ac आदि की हवा न लेवे, (पंखा,कूलर,आदि का जरुरत मंद व ब्राह्मणों को दान करे)
श्रावण – हरे फल-सब्जियों का सेवन न करे व इनका दान करे|
भाद्रपद – दही का सेवन ना करे, (दही मिश्री का दान करे)
आश्विन – खीर का सेवन ना करे, (खीर-मिश्री का दान करे)
कार्तिक – कार्तिक स्नान करे, (जमीन पर शयन करे,सुख सहेज का दान करे,)
पुन: मार्गशीर्ष कृष्णा द्वादशी को 33 जोड़ो का भोजन करवाकर विद्वान ब्राह्मणों द्वारा यज्ञादि कार्य करवाते हुए कथा आदि का श्रवण करके पुन: समस्त वस्तुओ का व गोदान भूमिदान आदि करके उद्यापन करे ||